व्हाईट ड्वार्फ तारा (White Dwarf Star) क्या होता है यह जानने से पहले हमें यह जानना होगा की तारा बनता कैसे है और तारों की क्या कैटेगरी होती है।
इसके बाद ही हम समझ पाएंगे की व्हाईट ड्वार्फ तारा क्या होता है।
व्हाईट ड्वार्फ तारा (White Dwarf Star) कैसे बनता है
स्टेलर नेबुला (Stellar Nebula) गैस और धूल से मिलकर बनी होती हैं और यही नेबुला किसी भी तारे को जन्म देने का पहला चरण होती हैं।
स्टेलर नेबुला हाइड्रोजन, हीलियम और आयनाइज्ड गैस से मिलकर बनी होती हैं।
स्टेलर नेबुला की ग्रेविटी इतनी अधिक होती है की इसमें मौजूद गैस और धूल के कण आपस में जुड़ने लगते हैं और बड़ा आकार लेने लगते हैं।
जैसे जैसे ये जुड़ते जाते हैं इनके अंदर का गुरुत्वाकर्षण बल और बढ़ता जाता है और कुछ समय बाद ये बल इतना अधिक बढ़ जाता है की ये कण अपने ही अंदर कोलेप्स (collapse) कर जाते हैं और एक बहुत ही गर्म केंद्र बना लेते हैं।
ये कण जुड़ कर एक बड़ा आकार और गर्म केंद्र बना लेते हैं। ये केंद्र इतना गर्म होता है की इनके अंदर नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और इस तरह एक तारे का जन्म होता है।
अभी आपने समझा की तारा कैसे बनता है और अब हम आपको बताएंगे की तारा व्हाईट ड्वार्फ कैसे बनता है।
किसी भी तारे का व्हाईट ड्वार्फ बनना, न्यूट्रॉन तारा बनना या ब्लैक होल बनना तारे के द्रव्यमान पर निर्भर करता है।
जिस तारे का वजन हमारे सूर्य के वजन से लेकर हमारे सूर्य के वजन का 1.4 गुना तक होता है वो तारा व्हाईट ड्वार्फ बनता है।
जिन तारों का वजन हमारे सूर्य के वजन से 1.4 गुना अधिक से लेकर 20 गुना अधिक तक होता है वो तारा न्यूट्रॉन तारा बनता है।
और जो तारे हमारे सूर्य के वजन से 20 गुना अधिक वजनी होते हैं वो ब्लैक होल बन जाते हैं।
अब आपको इतना तो समझ में आ गया होगा की सभी तारे ब्लैक होल नहीं बनते हैं। केवल वही तारे जिनका वजन सूर्य के वजन से 20 गुना या इससे अधिक होता है वही ब्लैक होल बनते हैं।
नाभिकीय संलयन में दो हाईड्रोजन अणु जुड़ कर एक हीलियम का अणु बनाते हैं। हीलियम का द्रव्यमान दो हाईड्रोजन अणु के द्रव्यमान से थोड़ा कम होता है।
इसका कारण यह है की कुछ द्रव्यमान ऊर्जा के रूप में निकल जाता है। यही कारण है की तारे गर्म होते हैं।
अब यह गर्मी बाहर की ओर निकलती है और ग्रेविटी के विरूद्ध कार्य करती है। जिसके कारण एक बैलेंस बन जाता है और तारा आगे कोलेप्स नहीं कर पाता।
जब तारे का सारा हाईड्रोजन हीलियम में बदल जाता है तो तारे में और ऊर्जा रिलीज नहीं होती और ये फिर से ग्रेविटी के कारण अपने केंद्र में कोलेप्स होने लगता है।
इससे केंद्र का तापमान और अधिक बढ़ जाता है और हीलियम का नाभिकीय संलयन शुरू हो जाता है।
जिसमें हीलियम के अणु जुड़ कर कार्बन के अणु बनाने लगते हैं। इसी तरह यह प्रक्रिया तब तक चला करती है जब तक आयरन ना बन जाए।
अब आयरन के आगे नाभिकीय संलयन नहीं हो पाता क्योंकि इसके लिए तारे में इतना तापमान ही नहीं हो पाता और ना ही आगे की प्रक्रिया के लिए कार्बन बचता है।
इस स्थिति में तारे का तापमान इतना नही हो पाता की वो ग्रेविटी को अंदर जाने से रोक सके और इसी कारण तारा अपने केंद्र के अंदर कोलेप्स कर जाता है।
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान तारे का आकार बढ़ता जाता है। आयरन के नाभिकीय संलयन तक पहुंचते पहुंचते तारा लाल रंग के एक बड़े आकार का हो जाता है।
फिर और ऊर्जा ना मिलने के कारण तारे की बाहरी परत फट जाती है और आकाश में फैल जाती है। जिसे हम प्लैनेटरी नेबुला (Planetary Nebula) कहते हैं।
इस प्लैनेटरी नेबुला के मध्य में एक केंद्र बचता है जिसका आकार किसी ग्रह के बराबर होता है जैसे की हमारी पृथ्वी का आकार। यह केंद्र सफेद रंग की किरण फेंकता है जिसे हम व्हाईट ड्वार्फ कहते हैं।
चुंकि व्हाईट ड्वार्फ (White Dwarf Star) में कोई तत्व नहीं होता की वो आगे नाभिकीय संलयन कर पाए इसलिए इसकी ऊर्जा धीरे धीरे खत्म हो जाती है।
अरबों सालों में यह व्हाईट ड्वार्फ (White Dwarf Star) ठंडा हो जाता है और फिर ब्लैक ड्वार्फ में बदल जाता है।
चुंकि व्हाईट ड्वार्फ से ब्लैक ड्वार्फ बनने में इतना समय लगता है जितना की हमारे ब्रह्मांड की आयु भी नही है इसीलिए आजतक कोई भी ब्लैक ड्वार्फ नहीं खोजा जा सका है।
ब्लैक ड्वार्फ स्टार (White Dwarf Star) और ब्लैक होल दोनों बिल्कुल अलग अलग होते हैं।
आकाश में हमें जो सबसे चमकदार तारा दिखाई देता है सीरियस (Sirius) वह व्हाईट ड्वार्फ तारा ही है।
व्हाईट ड्वार्फ (White Dwarf Star) का तापमान 1 लाख केल्विन तक हो जाता है।
हमारा सूर्य भी व्हाईट ड्वार्फ (White Dwarf Star) बनेगा
हमारा सूर्य एक मध्यम आकार का तारा है और इसकी आयु लगभग 4.6 बिलियन साल है।
आज के करीब 4.5 बिलियन साल बाद सूर्य भी एक व्हाईट ड्वार्फ तारा (White Dwarf Star) बन जाएगा और इसका आकार पृथ्वी तक आ जायेगा।
सूर्य के आकार का बढ़ कर पृथ्वी तक आने के पहले ही पृथ्वी नष्ट हो चुकी होगी।
क्योंकि जब सूर्य व्हाईट ड्वार्फ (White Dwarf Star) बनने की प्रक्रिया में होगा तब वह इतनी अधिक ऊर्जा निकालेगा की पृथ्वी का सारा वातावरण खत्म हो जाएगा और पृथ्वी का जीवन इस गर्मी की वजह से खत्म हो जाएगा।
हालांकि ऐसा होने में अभी लगभग 4 बिलियन साल हैं। सूर्य व्हाईट ड्वार्फ बन कर बुध ग्रह, शुक्र ग्रह और पृथ्वी को खा चुका होगा।
हमारा सूर्य कभी ब्लैक होल या न्यूट्रॉन स्टार नहीं बन पाएगा क्युकी इसका द्रव्यामन बहुत कम है।
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