मनुष्य हमेशा से ही पृथ्वी के बाहर जीवन की खोज में लगा हुआ है। अभी तक के ज्ञात सभी ग्रह, उपग्रह या तारों में जीवन का कोई भी संकेत (Europa) नहीं मिला है।
लेकिन हमारे सौर मंडल में एक ऐसा उपग्रह मौजूद है जहां ना सिर्फ समुंद्र है बल्कि बर्फ की कई किलोमीटर ऊंची चादर बिछी हुई है।
हम बात कर रहे हैं ब्रहस्पति ग्रह के चंद्रमा यूरोपा के बारे में।
यूरोपा (Europa) एक ऐसा उपग्रह है जो बर्फ से ढका हुआ है और उसके अंदर समुंद्र है।
आईए जानते हैं ब्रहस्पति के उपग्रह यूरोपा के बारे में
क्यों खास है यूरोपा (Europa)
यूरोपा जुपिटर का छठा उपग्रह है। यूरोपा हमारी पृथ्वी के चंद्रमा से थोड़ा सा छोटा और प्लूटो से थोड़ा सा बड़ा है।
यूरोपा की खोज गैलीलियो गलीलेई ने 8 जनवरी 1610 में की थी।
इसका डायमीटर 3,100 किलोमीटर है। यूरोपा 3.5 दिन में जुपिटर का एक चक्कर लगाता है।
यूरोपा (Europa) की उम्र जुपिटर के बराबर ही है यानी की 4.5 बिलियन साल।
यूरोपा का अधिकतम तापमान -160°C है और न्यूनतम तापमान इसके ध्रुव पर होता है जो की -220°C है।
यूरोपा पूरी तरह से बर्फ से ढका हुआ है और यही कारण है की यह हमारे सोलर सिस्टम का सबसे चमकदार उपग्रह है।
इसके बर्फ से ढके होने के कारण ही यह अपने ऊपर पड़ने वाले अधिकतर प्रकाश को परावर्तित कर देता है और इसीलिए यह इतना चमकदार दिखाई देता है।
यूरोपा (Europa) पृथ्वी की तरह ही सिलिकेट पत्थरों से बना है और इसका कोर आयरन से बना हुआ है।
लेकिन यूरोपा की सतह पूरी तरह पानी और बर्फ से ढकी हुई है।
वैज्ञानिक मानते हैं की यूरोपा की इस बर्फ की सतह के नीचे समुंद्र हो सकता है।
यूरोपा की बर्फ की सतह पर बहुत सारे क्रैक दिखाई देते हैं और इस क्रैक की वजह यूरोपा (Europa) के समुंद्र में आ रहे ज्वार हो सकते हैं।
जब यूरोपा जूपिटर के पास आता है तो ज्वार आते हैं और जब दूर जाता है तो ज्वार सामान्य हो जाते हैं।
यही कारण है यूरोपा की बर्फ की सतह पर ढेर सारे दरार होने का।
यूरोपा पर जितनी हाइड्रोजन है उसका 10 गुना ऑक्सीजन है इसका मतलब ये हुआ कि यूरोपा पर पृथ्वी के बराबर ऑक्सीजन है।
यूरोपा (Europa) पर जीवन क्यों संभव नहीं है
पानी, बर्फ और ऑक्सीजन ऐसी चीजें हैं जो यूरोपा को जीवन के लिए अनुकूल बनाती है।
लेकिन फिर भी यूरोपा पर मानव जीवन संभव नहीं है और इसके कई तार्किक कारण हैं।
गुरुत्वाकर्षण
यूरोपा (Europa) के साथ सबसे बड़ी समस्याओं में से एक यह है कि इसका गुरुत्वाकर्षण बहुत कमजोर है।
इसका गुरुत्वाकर्षण 1.315m/s2 और पृथ्वी का 9.81m/s2 है।
यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का लगभग 13.4% है।
अंतरिक्ष की यात्राओं के दौरान ग्रैविटी ना होने के कारण मनुष्य के शरीर पर बहुत अधिक दुष्प्रभाव पड़ते हैं।
अगर आप अंतरिक्ष में एक सप्ताह भी व्यतीत करते हैं तो आपकी मांशपेशियां और हड्डियां बहुत कमजोर हो जाती हैं।
यही कारण है की अंतरिक्ष यात्रियों को अपना अधिकतर समय एक्सरसाइज करके निकालना पड़ता है।
यूरोपा (Europa) में तो गुरुत्वाकर्षण बहुत ही कम है लगभग पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के दसवें भाग के बराबर, इसलिए वहां जीवन बहुत ही मुश्किल होगा।
अभी तक वैज्ञानिकों को यह भी नहीं पता है की ऐसे कम गुरुत्वाकर्षण में पैदा होने वाले बच्चे कैसे होगें और उनके शरीर पर इसका क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा।
यूरोपा का तापमान
यूरोपा का तापमान बहुत ही कम है।
यूरोपा में औसत तापमान -120°C रहता है और ध्रुवों पर यह तापमान -220 °C पहुंच जाता है।
ऐसे विषम तापमान में रहना या जीवन पनपना संभव नहीं है। यूरोपा का इतना कम तापमान सूर्य से इतनी अधिक दूरी के कारण है।
ऑक्सीजन
यूरोपा का वायुमंडल ऑक्सीजन से बना है। लेकिन जीव इस ऑक्सीजन में सांस नहीं ले सकते क्योंकि ऑक्सिजन के साथ साथ नाइट्रोजन भी बहुत जरूरी है।
जैसा धरती के वायुमंडल पर है, यहां 21% ऑक्सिजन और 78% के करीब नाइट्रोजन गैस है।
मैग्नेटिक फील्ड
यूरोपा पर जीवन ना पनपने का एक कारण वहां चुंबकीय क्षेत्र का ना होना भी है। पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र सूर्य की हानिकारक रेडियेशन से पृथ्वी को बचाता है।
लेकिन यूरोपा (Europa) का कोई भी चुंबकीय क्षेत्र नहीं है जिसकी वजह से सूर्य से आने वाली सारी रेडिएशन सीधे यूरोपा पर गिरती हैं।
यह रेडिएशन जीवन के लिए सबसे बड़ा खतरा होती हैं।
यूरोपा की सबसे बड़ी खासियत वहां जल का और ऑक्सिजन का होना है।
लेकिन अन्य परिस्थितियां जीवन को सहायता नहीं करती हैं।
अगर हम किसी तरह वहां के बर्फ को पिघलाने में सफल हो गए तो शायद हमें यूरोपा के समुंद्र में एक नया जीवन देखने को मिल सकता है।
लेकिन अभी तक तो ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आती।
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