कन्यादान का मतलब क्या होता है

अभी हाल ही में एक आईएएस (IAS) ऑफिसर की शादी बहुत ही चर्चा में रही थी क्योंकि उस आईएएस ने अपने पिता द्वारा कन्यादान करवाने से मना कर दिया था।

उस महिला आईएएस का कहना था की मैं कोई दान की वस्तु नहीं हूं जो आप मुझे कन्यादान के रूप में दूल्हे को दान दे दें।

इस बात को सोशल मीडिया पर बहुत उछाला गया था और हर जगह उस महिला आईएएस की तारीफ हो रही थी।

कई सामाजिक संगठन आगे बढ़कर आए और उन्होंने हिंदू विवाह की इस प्रथा पर रोक लगाने की वकालत की।

पढ़े लिखे होने का संबंध मूर्खता से नहीं होता, कोई पढ़ा लिखा हद से भी ज़्यादा मूर्ख हो सकता है लेकिन शायद जिस महिला आईएएस ने इस मुद्दे को इतना उछाला उसको खुद भी हिन्दू धर्म में होने वाले हर रीति के बारे में नहीं पता होगा।

सबसे हैरानी की बात ये रही की वहां उस शादी में मौजूद किसी भी बड़े बुर्जुग या पण्डित जी ने भी उस कन्या को कुछ नहीं समझाया की कन्यादान का सही मतलब क्या होता है।

कन्यादान का मतलब क्या होता है?
वेदों के अनुसार कन्यादान क्या है?

आजकल के मूर्ख युवा जिनको कुछ पता नहीं होता और अपने अल्प ज्ञान को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं।

चाहे वह आईएएस जैसे सम्मानजनक पद पर बैठने वाले लोग ही क्यों ना हो।

चलिए आज आपको समझाते हैं की कन्या दान का सही मतलब क्या होता है।

कन्यादान का मतलब कन्या का दान नहीं होता

यह सबसे बड़ी भ्रांति है हमारे अल्प ज्ञानी समाज में की बिना किसी बात का कारण जाने हुए उसका विरोध करने लगते हैं। बात अगर हिंदू धर्म की हो तो विरोध और बढ़ जाता है।

हमारे समाज के बुजुर्ग लोगों को पता है हिन्दू समाज में बच्चे के पैदा होने से लेकर मरने तक को 16 संस्कार में बांटा गया है।

1) गर्भाधान

गर्भाधान से पहले उचित धार्मिक क्रियाएँ।

2) पुंसवन

इच्छित पुत्र/पुत्री प्राप्ति हेतु गर्भ के 3 महीने में।

3) सीमन्तोनयन

गर्भवती को अमंगलकारी शक्तियों से बचाने हेतु 4,6,8 महीने में होता है।

4) जातकर्म

जन्म पर किया जाता है।

5) नामकरण

जन्म के दसवें या 12 वें दिन नाम रखने हेतु।

6) निष्क्रमण

4 महीने में बालक को पहली बार घर से निकाल कर सूर्य,चन्द्र दर्शन कराना।

7) अन्नप्राशन

छठे महीने में पहली बार अन्न का आहार देने की प्रक्रिया।

8) चुड़ाकर्म

इस संस्कार में शिशु के सिर के बाल (मुडंन, शिखा) पहली बार उतारे जाते हैं

9) कर्णवेध

3,5 वें वर्ष में कान बींधे जाते हैं।

10) विद्यारम्भ

गुरु से अक्षर ज्ञान।

11) उपनयन/यज्ञोपवीत

ब्रह्मचर्य प्रारम्भ,जनेऊ धारण, गुरुकुल जाना।

12) वेदारम्भ

वेदों के पठन-पाठन हेतु अधिकार लेने हेतु।

13) केशान्त/गोदान

प्राय: 16 वर्ष की आयु में बाल कटवाना। केशांत संस्कार के दौरान मुख्य रूप से शिष्य की दाढ़ी काटे जाने की परंपरा है, लेकिन अधिकतर मामलों सिर के बाल भी उतार दिये जाते हैं।

14) समावर्तन/दीक्षान्त

शिक्षा समाप्ति पर गुरुदक्षिणा आदि।

15) विवाह

गृहस्थाश्रम में प्रवेश के समय।

16) अंत्येष्टि

मृत्यु पर दाह संस्कार।

सोलह संस्कार में 15 संस्कार होता है विवाह संस्कार और विवाह संस्कार में 22 चरण होते हैं।

22 चरणों में एक चरण होता है कन्यादान।

कन्यादान में बेटी अपने गोत्र को छोड़कर अपने पति के गोत्र में जाती है इसे ही हम कन्यादान कहते हैं।

लेकिन कुछ अल्पज्ञानी और पढ़े लिखे अनपढ़ लोग इसे कन्या का दान से जोड़कर देखते हैं।

हमारे ग्रंथों में कहीं भी कन्यादान का मतलब यह नहीं लिखा है की पिता अपने पुत्री का दान कर रहा है, इसका मतलब ये है की बेटी का अब तक का गोत्र पिता का था और अब शादी के बाद वह अपने पति के गोत्र में शामिल हो जायेगी।

अब आप खुद निर्णय करिए की कन्यादान का सही मतलब क्या है और यह गलत कहां से हो गया।

विवाह में होने वाले सभी मंत्रो और क्रियाओं का भी अपना मतलब होता है।

अगर हमारे समाज का प्रतिनिधित्व ऐसे मूर्ख आईएएस अधिकारी करेंगे तो समाज का भगवान ही मालिक है।

क्या स्त्री कन्यादान कर सकती है?

हाँ, अगर कन्या का पिता न हो तो कन्या की माँ कन्यादान कर सकती है।

कन्या के माता-पिता न होने पर भाई कन्यादान कर सकता है।

यदि कन्या के परिवार में कोई न हो तो कन्या का कोई रिश्तेदार या परिचित भी कन्यादान कर सकता है।

 

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