हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था क्यों है | भारत में जाति व्यवस्था की शुरुआत कैसे हुई

 


आजकल
भारत में जिस बात ने हिंदुओ को अलग अलग कर रखा है वो है जाति। 

हमारा पूरा
समाज जो पहले एक हुआ करता था वो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र में बंट
चुका है। 

हर कोई खुद को उच्च और दुसरे को नीच बताने में लगा हुआ है। 

जाति
प्रथा क्या है अथवा जाति प्रथा का अर्थ क्या है इसको जाने बिना लोग भेदभाव
करने लगे। 

यहां तक की लोगों की जाति के आधार पर राजनैतिक पार्टियां भी बन
गई हैं की तुम शूद्र हो तो मुझे वोट दो, तुम वैश्य हो तो मुझे वोट दो, तुम
ठाकुर हो तो तुम मुझे वोट दो और अगर तुम ब्राह्मण हो तो मुझे वोट दो। 

सारे
हिन्दू, जाति का पूरा सच जाने बिना आपस में ही लड़ा करते हैं। 

क्या हम
जानते हैं की जाति प्रथा कब से बनी ? 

इसका सबसे ज्यादा फायदा उठाती है ये
राजनैतिक पार्टियां और दुसरे मज़हब के लोग। 

यहां मैं जाति व्यवस्था के बारे
में ज्यादा नहीं बताऊंगा क्युकी वो तो सबको
पता है। 

यहां मैं बात करूंगा की आखिर जाति व्यवस्था का कारण क्या था और ये
कहां पर गलत हो गई।

 

जाति व्यवस्था का अर्थ Caste system in India in hindi


मैं आपके आस पास का ही उदाहरण देता हुं।
 
पुराने जमाने में जब हॉस्पिटल
आदि नहीं होते थे तो आपके बच्चे का जन्म जो दाई करवाती थी वो किस जाति की
होती थी? 
 
बच्चे की नाभि काटने वाली, जो बच्चे को स्पर्श करती थी और मालिश करती थी वो कौन सी जाति की होती थी?
 
आपके बच्चे का मुंडन कौन सी जाति करती थी?
 
शादी के मण्डप में सबसे पहले लड़का का पिता किसके लिए कपड़े की मांग करता था नाई और धोबी?
 
किस जाति के बनाए हुए सूप से छठ पूजा होती है ?
 
आपके घर में कुएं से पानी कौन लाता था?
 
भोजन के लिए पत्तल कौन सी जाति बनाती थी?
 
आपके कपड़े कौन धोता है?
 
आप अपनी फूल सी बिटिया की डोली किस जाति के लोगों से उठवाते थे?
 
आपकी फसल किस जाति के लोग बोते काटते है?
 
आपकी चिता कौन सी जाति के लोग जलाते है?
 
आपको अपना उत्तर मिल गया होगा। 
 
जीवन से लेकर मरण तक हर वक्त हम आपस में एक
दूसरे से जुड़े रहते है। अब आप खुद बताइए इसमें कहां है छुआ छूत? 
 
 

हिन्दू धर्म में जाति व्यवस्था

 

प्राचीन काल मे वर्ण व्यवस्था थी, जाति व्यवस्था नहीं थी हमारे धर्म ग्रंथों में भी वर्ण व्यवस्ता का उल्लेख है लेकिन वो व्यवस्था कर्म के अनुसार थी ना की जन्म के अनुसार। 
 
आपके कर्म के ही आधार पर आपको ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शुद्र में बांटा जाता था और सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी की इसके बावजूद कहीं भी धार्मिक भेदभाव का उल्लेख नहीं है। 
 
सबको बराबर माना जाता था। जितना सम्मान ब्राह्मण के होता था उतना ही शुद्र का। 
 
कहीं भी कोई भेदभाव नहीं था आपने अगर रामायण पढ़ी होगी तो उसमे साफ साफ
लिखा है की श्री राम जब शिक्षा लेने गुरुकुल गए तो वहां उनके साथ हर जाति
के लोग शिक्षा ले रहे थे। 
 
यहां तक की राजा निषादराज श्री राम जी के परम
मित्र थे और वनवास जाते हुए और वापस लौटते हुए वो निषादराज से मिलते हुए
गए। 
 
अगर हमारे धर्म में भेदभाव होता तो श्री राम शबरी के जूठे बेर क्यों खाते?
 
श्री कृष्ण अपने मित्र सुदामा के पैर क्यों धोते ? 
 
रामचरितमानस रचने वाले वाल्मिकी किस जाति के थे ?
 
जब
हमारे धर्म ग्रंथों में जाति के हिसाब से कोई भेदभाव नहीं किया गया तो हम
कब से जाति पाती, ऊंच नीच मानने लगे। 
 
ये सब हमारे धर्म में मुस्लिम
आक्रमणकारियों और अंग्रेजो ने डाल दिया। 
 
इन सबको पता था की जब तक हिंदुओ के
बीच फूट नहीं डालेंगे तब तक इन पर राज नहीं कर सकते। 
 
इसलिए उन्होंने पैसों
के लालच दे कर अपने हिसाब से जाति प्रथा को जन्म के आधार पर कर दिया। 
 
जबकी
ये जन्म के आधार पर ना होकर कर्म के आधार पर था। 
 
इसमें गलतफहमी बड़ाने का
काम लालची हिंदुओं ने भी किया जो खुद को ऊंच और दूसरे को नीच मानने लगे।
 
ये
प्रथा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आई और लोगों ने इसका सच जानने की कोशिश भी नही
की। 
 
लोगों के भेदभाव मिटाने का प्रयास विवेकानंद से लेकर अंबेडकर तक ने
किया। 
 
लेकिन हिंदुओ ने ऊंच नीच को तब तक अपने मन में बसा लिया था। 
 
लोगों को
कुएं का पानी लेने देना और शुद्रों को मंदिर में ना जाने देना ये सब
मुगलों द्वारा फैलाया हुआ एक जाल था जिसमे हिंदू आसानी से फसता चला गया। 
 
अन्यथा आपको किसी भी धर्म ग्रन्थ में ये भेद भाव नहीं मिलेगा। 
 
कई जगह लोग
बोलते हैं की उस किताब में ये लिखा है तो आपको बता दू की भारतीय इतिहास को
इतनी बार तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया और लिखा गया है की उसका असली सार कहीं
खो गया।
 
 

ब्राम्हणौ ने समाज को जोड़ा हैं तोड़ा नहीँ  


ब्राम्हणौ
ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े दलित को जोड़ते हुये
अनिवार्य किया कि दलित स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हे पर ही सभी शुभाशुभ
कार्य होगें। 
 

इस तरह सबसे पहले दलित को जोडा गया धोबन के द्वारा दिये गये
जल से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा. कुम्हार द्वारा दिये
गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को
जोड़ा

 
मुसहर जाति जो वृक्ष
के पत्तों से पत्तल/दोनिया बनाते है यह कहते हुये
जोड़ा कि इन्हीं के बनाए गये पत्तल/दोनीयों से देवताओं का पुजन सम्पन्न
होगे. 
 
कहार जो जल भरते थे यह कहते हुए जोड़ा कि इन्हीं के द्वारा दिये गये
जल से देवताओं के पुजन होगें. 
 
बिश्वकर्मा जो लकड़ी के कार्य करते थे यह कहते
हुये जोड़ा कि इनके द्वारा
बनाये गये आसन/चौकी पर ही बैठकर वर-वधू देवताओं का पुजन करेंगे

फिर वह हिन्दु जो किन्हीं कारणों से मुसलमान बन गये थे उन्हें जोड़ते
हुये कहा गया कि इनके द्वारा सिले हुये वस्त्रों (जामे-जोड़े) को ही पहनकर
विवाह सम्पन्न होगें. 
 
फिर
उस हिन्दु से मुस्लिम बनीं औरतों को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके
द्वारा पहनाई गयी चूडियां ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी. 
 
धारीकार जो डाल और मौरी को दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता
है,को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा बनाये गये उपहारों के बिना
देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल सकता….

डोम
जो गंदगी साफ और मैला ढोने का काम किया करते थे उन्हें यह कहकर जोड़ा गया
कि मरणोंपरांत इनके द्वारा ही प्रथम मुखाग्नि दिया जायेगा. 
 
इस तरह समाज के
सभी वर्ग जब आते थे तो घर कि महिलायें मंगल गीत का गायन करते हुये उनका
स्वागत करती है और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर बिदा करती थी.

ब्राह्मणों
का दोष कहाँ है?…हाँ ब्राह्मणों का दोष है कि इन्होंने अपने ऊपर
लगाये गये निराधार आरोपों का कभी खंडन नहीं किया, 
 
जो ब्राह्मणों के
अपमान का कारण बन गया। इस तरह जब समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के
बाद ब्राह्मण नाई से पुछता था कि क्या सभी वर्गो कि उपस्थिति हो गयी है…? 
 
 नाई के हाँ कहने के बाद ही ब्राह्मण मंगल-पाठ प्रारम्भ किया करते हैं।

भारत में जाति प्रथा का प्रभाव

ईसाई मिशनरियों ने इसका फायदा उठाते हुए हिंदुओं को बरगला कर की तुम नीच
हो, तुमको ये लोग सम्मान नही देते, ईसाई धर्म को अपना लो यहां सब बराबर हैं
और कम पड़े लिखे हिंदू उनकी चिकनी चुपडी बातों में आकर अपना धर्म परिवर्तन
करवा लेते हैं और बाद में अपने ही धर्म की बुराई करते हैं। 
 
इसी तरह लाखों
लोगों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित करवा दिया गया। यही लोग अब किसी विशेष
पार्टी के वोट बैंक बन जाते हैं। 
 
ऐसे कन्वर्टेड हिंदू बिना किसी समझ के
जाति व्यवस्था की बुराई किया करेंगे।
 
किसी
को अहीर बोलो तो उसको बुरा लग जायेगा क्योंकि उसे उस शब्द का सही अर्थ नही
पता।
 
यदुवंशी क्षत्रिय ही अहीर हैं। इस समुदाय के अधिकतर लोगों को यादव
समुदाय के रूप में जाना जाता है। 
 
अब आप खुद बताए इसमें अपमानजनक कहां है? 
 
लेकिन लोगों को ज्ञान नही है इसलिए वो इसी शब्द का बुरा मान जाते है। ये तो
स्वयं भगवान श्री कृष्ण जी के नाम के साथ जुड़ा है। 
 
इसी
तरह दलित शब्द, क्या आपको पता है दलित शब्द को सबसे पहले 1831 में ईस्ट
इंडिया कंपनी के आर्मी अफसर जे. जे. मोल्सवर्थ द्वारा किया गया था। 
 
हमारे
प्राचीन ग्रंथो में शुद्र शब्द का वर्णन है लेकिन उस शब्द को कभी भेदभाव
अथवा अपमानजनक शब्द की तरह नहीं इस्तेमाल किया गया। 
 
जो सम्मान ब्राह्मण
शब्द के लिए था वही सम्मान शुद्र के लिए भी था। 
 
लेकिन अंग्रेजो ने राज करने
के लिए भारतीय में फूट डालने के लिए इन सब शब्दों को गढ़ा।
 
ये
सब मुस्लिमो और अंग्रेजो का फूट डालो और राज करो का तरीका था। 
 
ताकि वो हम
पर राज कर सकें। अन्यथा हमारे सनातन धर्म में किसी को भी ऊंच या नीच नही
माना गया। 
 
हिंदू धर्म में सभी जाति सम्मानित हैं और इसमें कभी कोई भेदभाव
नहीं था।
 
 
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