आजकल युवा वर्ग के भीतर हाथ में कलरफुल धागे बांधने का मानो फैशन सा चल पड़ा है।
आपने ज्यादातर देखा होगा कि मंदिरों या धार्मिक स्थानों पर हाथ में धागा लिए पंडित खड़े रहते हैं या फिर घर पर किसी खास पूजा व अनुष्ठान के दौरान यह पंडित जी द्वारा बांधा जाता है।
कलावा को मौली भी कहा जाता है। परंतु इस धागे के गुण के बारे में बहुत कम लोग जानते है कि यह कलावा क्यों पहना जाता है और इसके पीछे क्या कारण है?
आजकल पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित अंग्रेजी स्कूलों में पढ़े लोग मौली बांधने को एक ढकोसला मानते हैं और उनका मजाक उड़ाते हैं!
हद तो ये है कि कुछ लोग मौली बंधवाने में अपनी आधुनिक शिक्षा का अपमान समझते हैं एवं मौली बंधवाने से उन्हें अपनी सेक्यूलरता खतरे में नजर आने लगती है!
मौली’ का अर्थ है ‘सबसे ऊपर’ यानि कि मौली का तात्पर्य सिर से है। मौली को कलाई में बांधे जाने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं तथा इसका वैदिक नाम उप मणिबंध है।
भगवान शिव के सिर पर चन्द्र विराजमान हैं, इसीलिए इसे चंद्रमौली भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि जब इंद्र जी वृत्रासुर से युद्ध करने जा रहे थे तब इंद्राणी ने इंद्र जी की दाहिनी भुजा के कलाई पर रक्षा-कवच के रूप में कलावा बांधा था और इंद्र इस युद्ध में विजयी हुए।
तब से रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा आज तक चली आ रही है।
एक पूर्णतया वैज्ञानिक धर्म होने के नाते हमारे हिंदू सनातन धर्म की कोई भी परंपरा बिना वैज्ञानिक दृष्टि से हो कर नहीं गुजरता और हाथ में मौली धागा बांधने के पीछे भी एक बड़ा वैज्ञानिक कारण है!
दरअसल मौली का धागा कच्चे सूत से तैयार किया जाता है और, यह कई रंगों जैसे, लाल, काला, पीला अथवा केसरिया रंगों में होती है।
मौली को लोग साधारणतया लोग हाथ की कलाई में बांधते हैं और ऐसा माना जाता है कि हाथ में मौली का बांधने से मनुष्य को भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती एवं सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है।
हाथ में मौली धागा बांधने से मनुष्य बुरी दृष्टि से बचा रहता है और हाथों में मौली धागा बांधने से मनुष्य के स्वास्थ्य में बरकत होती है।
कलावा बांधने का वैज्ञानिक कारण यह है कि इससे वात, पित्त और कफ का संतुलन शरीर में बना रहता है। डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक और लकवा जैसे गंभीर रोगों से कलावा बचाने में सहायक है।
आदिकाल वैद्य इसीलिए हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में इसे बंधवाते थे। शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है
(आपने भी देखा होगा कि डॉक्टर रक्तचाप एवं ह्रदय गति मापने के लिए कलाई के नस का उपयोग प्राथमिकता से करते हैं )इसीलिए वैज्ञानिकता के लिहाज से हाथ में बंधा हुआ मौली धागा एक एक्यूप्रेशर की तरह काम करते हुए मनुष्य को रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाता है।
हाथों के इस नस और उसके एक्यूप्रेशर प्रभाव को हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले जान लिया था! हमारे ऋषि-मुनियों ने गूढ़ से गूढ़ बातों को भी हमारी परम्परों और रीति-रिवाजों का हिस्सा बना दिया ताकि हम अपने पूर्वजों के ज्ञानसे लाभान्वित होते रहें!
कलावा सूत का बना होना चाहिए इसे मन्त्रों के साथ ही धारण करना चाहिए। कलावा को किसी भी दिन पूजा के बाद धारण किया जा सकता है।
लाल पीला और सफ़ेद रंग के धारे से बना हुआ कलावा सर्वोत्तम माना जाता है।
पुराने कलावे को वृक्ष के नीच रख देना चाहिए या जमीन में गाड़ देना चाहिए। सिर्फ मंगलवार और शनिवार कलावा बदलने का शुभ दिन होता है
राशि अनुसार जानें कि किस राशि के लोगों को कौनसा धागा धारण करना चाहिए
मेष और वृश्चिक– मंगल और हनुमान – भगवान हनुमान या मंगल ग्रह की कृपा के लिए लाल रंग का धागा हाथ में बांधना चाहिए.
वृषभ और तुला– शुक्र और लक्ष्मी – शुक्र या लक्ष्मी की कृपा के लिए सफेद रेशमी धागा बांधना चाहिए.
मिथुन और कन्या– बुध – बुध के लिए हरे रंग का सॉफ्ट धागा बांधना चाहिए.
कर्क– चंद्र और शिव – शिव की कृपा या चंद्र के अच्छे प्रभाव के लिए भी सफेद धागा बांधना चाहिए.
धनु और मीन– गुरु और विष्णु – गुरु के लिए हाथ में पीले रंग का रेशमी धागा बांधना चाहिए.
मकर और कुंभ– शनि – शनि की कृपा के लिए नीले रंग का सूती धागा बांधना चाहिए.
राहु-केतु और भैरव – राहु-केतु और भैरव की कृपा के लिए काले रंग का धागा बांधना चाहिए.
शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में , एवं विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में मौली बांधने का नियम है।
कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों उसकी मुठ्ठी बंधी होनी चाहिए और, दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।
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