Ram Setu Pul in Hindi – राम सेतु समुंद्र पर बना हुआ एक अकल्पनीय और अविश्वसनीय पुल है। यह तमिलनाडु के रामेश्वरम (पंबन द्वीप) से लेकर श्री लंका के मन्नार द्वीप को जोड़ता है।
राम सेतु करीब 50 किलोमीटर लंबा है और यह भगवान श्री राम की सेना द्वारा आज के 7,000 साल पहले बनाया गया था।
आज इसका बहुत सा भाग समुंद्र में डूब चुका है लेकिन कहीं कहीं यह ऊपर तक दिखाई देता है और कहीं यह 30 फीट की गहराई तक है।
वैज्ञानिक रिपोर्ट और सैटेलाइट चित्रों के माध्यम से पता चला है की यह सन् 1480 तक समुद्र के ऊपर था और साफ साफ दिखाई देता था लेकिन एक चक्रवात के कारण यह काफी डैमेज हो गया था। 1480 के पहले इसे पैदल ही पार किया जाता था।
वैज्ञानिक शोध के पहले कई लोग यह मानते थे की राम सेतु 18,000 साल पुराना है और सिर्फ कोरल रीफ से बनी एक लंबी कतार है।
लेकिन बाद में वैज्ञानिक रिसर्च (कार्बन डेटिंग) के बाद पता चला की इसकी उम्र 7,000 साल (राम जी के समय) है और यह मानव निर्मित है।
यह रिसर्च सेतु समुद्रम परियोजना के समय की गई थी। जब केंद्र की कांग्रेस सरकार ने राम सेतु को काल्पनिक बता कर इसको तोड़ने के लिए याचिका दायर की थी।
राम सेतु कितने दिन में बनकर तैयार हुआ था
वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम सेतु 5 दिन में बनकर तैयार हो गया था।
वाल्मिकी रामायण में जिस लंबाई और चौड़ाई का जिक्र है वह 100 योजन लंबा और 10 योजन चौड़ा है।
1 योजन में 8 मील होते हैं, इस हिसाब से कुल दूरी 1200 किलोमीटर हुई।
पहले भारत और श्री लंका के बीच की दूरी करीब 1200 किलोमीटर थी लेकिन भूगर्भ की प्लेटों के लगातार खिसकने के कारण अब यह दूरी लगभग 50 किलोमीटर ही रह गई है और अभी के उपस्थित राम सेतु की लंबाई भी 50 किलोमीटर बची है।
राम सेतु को एडम ब्रिज क्यों कहा जाता है
राम सेतु हमारे देश के कोने कोने में निर्मित मंदिरों और गुफाओं में उकेरा गया है जो हजारों साल पुराने चित्र हैं।
हिन्दू इतिहास के अलावा राम सेतु का उल्लेख पश्चिमी इतिहास में भी है।
परसिया (आज का ईरान) के एक भूगोल वैज्ञानिक इब्न खोरदबेह (870 CE) द्वारा लिखी गई किताब ” Books of Roads and Kingdom” में राम सेतु का उल्लेख है।
इसके अलावा अल बरूनी (पर्शिया का विद्वान) ने इसे एडम ब्रिज के नाम से पुकारा था और उसके अनुसार एडम जब धरती पर गिरा था तो वह इसी पुल से होकर भारत आया था।
एडम ब्रिज ब्रिज को यह नाम सही तरीके से 1828 में मिला जब अंग्रेजो ने इसे एडम ब्रिज का नाम दिया।
जब अंग्रेजो के जहाज यहां फसने लगे और उन्होने इसे तोड़ने का कई बार असफल प्रयास किया।
सन् 1837 में अंग्रेजो द्वारा 5 समुद्री विशेषज्ञों द्वारा इसपर रिसर्च करके इसको तोड़ने का फिर से प्रयास किया गया लेकिन यह भी विफल रहा।
उसी समय अंग्रेजो ने इसे एडम ब्रिज नाम दिया था उसके पहले आम जन इसे राम सेतु के नाम से जानते थे।
एक और बहुत महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तथ्य ये है की ऐसे बहुत से देश या जगह हैं जहां दो द्वीप या स्थान इतने पास हैं जैसे रामेश्वरम और मन्नार द्वीप लेकिन उनके बीच कोई भी पुल जैसी रचना क्यों नहीं है।
यह रचना सिर्फ राम सेतु में ही क्यों है इसके अलावा भारत के इतिहास में, मंदिरों में, गुफाओं में, भित्ति चित्रों में, नदियों के आस पास हर जगह राम सेतु का वर्णन मिल जायेगा।
यह सारे तथ्य हजारों साल पुराने हैं और यही बातें राम सेतु की प्रमाणिकता को सिद्ध करती है।
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