क्या हुआ जब एक प्रधानमंत्री गरीब बनकर थाने में गए और पूरा थाना सस्पैंड कर दिया !

हमने हमेशा कहानियों में पढ़ा है की राजा अपनी प्रजा का ध्यान रखने के लिए अपने राज्य में भेष बदल बदल कर घुमा करते थे और अपनी प्रजा के बारे में पूरी जानकारी लिया करते थे की कहीं कोई गलत काम तो नही कर रहा अथवा उसके राज्य में प्रजा क्या क्या परेशानियां झेल रही है। 
 
इसी तरह हमारे देश के एक ऐसे प्रधानमंत्री रहें हैं जो एक गरीब का भेष बनाकर थाने में गए और कुछ ऐसा वाकया हुआ की उन्होंने पूरा थाना सस्पैंड कर दिया। आइए जानते हैं की कौन था वो प्रधानमंत्री और क्या हुआ था उस दिन?
 
यह बात है सन् 1979 की इटावा जिले के ऊसराहार थाने में शाम छह बजे एक गरीब मैली धोती पहेने हुए पहुंचा और अपने बैल के चोरी की बात वहां के थानेदार को बताया और रिपोर्ट लिखने के लिए बोला। दरोगा ने रौबदार अंदाज में कुछ उल्टे सीधे सवाल पूछे और फिर किसान को डांट कर बिना रिपोर्ट लिखे भगा दिया। 
 

रिश्वत की मांग

 
जब किसान दुखी होकर जाने लगा तो एक सिपाही दौड़कर पीछे से आया और बोलने लगा की “अगर कुछ चाय पानी का इंतजाम कर दो तो रिपोर्ट लिख जाएगी।” 
 
काफी मान मनौवल के बाद सिपाही 35 रूपए में रिपोर्ट लिखवाने को राजी हो गया। उस वक्त ये अच्छी रकम मानी जाती थी।
रिर्पोट लिखने के बाद थानेदार ने उस गरीब किसान से कहा की “बाबा अंगूठा लगाओगे ये हस्ताक्षर करोगे?” 
 
किसान ने हस्ताक्षर करने को कहा तो थानेदार ने कागज और पेन आगे बड़ा दिया। किसान ने पेन के साथ अंगूठा लगाने वाला पैड भी उठा लिया तो थानेदार सोच में पड गया। 
 
थानेदार ने कहा की “जब तुझे हस्ताक्षर करना है तो इंक पैड क्यों उठा रहा है?” किसान शांत रहा और उसने सबसे पहले हस्ताक्षर किया और नाम लिखा ” चौधरी चरण सिंह” साथ में ही उन्होंने ने अपनें कुर्ते से एक एक मोहर निकली जिस पर लिखा था “प्रधानमंत्री, भारत सरकार” और उस कागज पर इंक पैड से लगा दी। 
 
यह देखकर थाने में हड़कंप मच गया। चौधरी चरण सिंह उस वक्त भारत के प्रधानमंत्री थे और वो थाने का अचानक निरीक्षण करने पहुंचे थे। उन्होने अपना काफिला बहुत ही दूर रुकवा दिया था और अपने कुर्ते को फाड़कर और मिट्टी लगाकर थाने पहुंचे थे ताकि किसी को कोई शक ना हो। 
 

उस दिन इटावा का वो पुरा थाना सस्पैंड कर दिया गया। आज कल के नेताओं को इस घटना से सबक लेने की जरूरत है ताकि भ्रष्टाचार कम हो सके और लोगों का विश्वास प्रजातंत्र पर बड़ सके।

 
 
 
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