भारत और पकिस्तान साथ में आजाद हुए थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के और लियाकत अली खान पकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बनें थे।
भारत ने डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर और उनकी टीम की मदत से 3 साल के अंदर अपना संविधान तैयार कर लिया था जबकि पकिस्तान को 9 साल लग गए अपना संविधान बनाने में।
भारत में लोकतंत्र शुरू से ही मजबूत रहा है। भारत के राजनीतिक गलियारे में आए दिन पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ
भाई पटेल को लेकर चर्चा हुआ करती है।
कई लोग ये मानते हैं की सरदार वल्लभ
भाई पटेल एक योग्य प्रधानमंत्री साबित होते तो कई लोग पंडित जवाहर लाल
नेहरू को योग्य शासक मानते हैं।
चलिए आज हम यह समझने की कोशिश करते हैं की अगर सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री बनते तो भारत में क्या क्या परिवर्तन होने की संभावना होती।
सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर
1) सरदार पटेल को भारत का सबसे अच्छा गृह मंत्री माना जाता है। सरदार पटेल मात्र 3 साल भारत के गृह मंत्री रहे और इन तीन सालों में उन्होंने अपनी दूर दृष्टि और काबिलियत के दम पर 562 रियासतों को भारत में जोड़ने का असंभव काम किया।
2) अगर सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री होते तो चीन युद्ध में वायु सेना का प्रयोग अवश्य करते, क्योंकि भारत की वायु सेना उस युद्ध में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती और चीन कभी भी इतनी अंदर तक ना घुस पाता।
वायु सेना के उपयोग से चीन की हार तय हो जाती क्यूंकि चीन की वायु सेना उतनी सक्षम नहीं थी जितनी भारत की थी। थल सेना को बहुत बड़ा सपोर्ट मिल जाता और वो आसानी से चीन को हरा सकते थे।
3) सरदार पटेल अगर नेहरू की जगह होते तो वो कभी भी यूनाइटेड नेशन की स्थाई सदस्यता चीन को नही देते, जो नेहरू ने बहुत ही आसानी से चीन को दे दिया था। इतनी महंगी गलती भारत आज भी भुगत रहा है।
4) अगर सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री होते तो वो कश्मीर का मुद्दा कभी भी यूनाइटेड नेशन ना ले जाते। नेहरु ने अपनी जीती हुई सेना को रोककर कश्मीर का मुद्दा यूनाइटेड नेशन ले गए थे।
जिसके कारण कश्मीर भारत के लिए सबसे बड़ा रोग हो गया। आज भी भारत के पास सिर्फ कुछ हिस्सा ही है कश्मीर का ऊपर से आतंकवाद और अलगाववाद का दंश अलग।
5) नेहरु हमेशा देश की सेना के प्रति उदासीन रहे, उनको देश की सुरक्षा को लेकर ज्यादा चिन्ता नहीं थी। इसका खामियाजा भी हमने भुगता 1961 में चीन के विरुद्ध युद्ध में।
सरदार पटेल अगर भारत के प्रधानमंत्री होते तो देश के लिए खुफिया एजेंसी की स्थापना अवश्य करते। पकिस्तान आईएसआई की स्थापना सन् 1948 में ही कर चुका था जबकि भारत ने इंदिरा गांधी के समय में सन् 1968 में खुफिया एजेंसी की स्थापना करी।
6) सरदार पटेल भारत की सुरक्षा की मजबूती के लिए परमाणु कार्यक्रम जरूर शुरु करते। अगर भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र होता तो चीन कभी भी हमले की गलती नहीं करता। हालांकि बाद में इंदिरा गांधी ने परमाणु परीक्षण शुरु किया लेकिन तब तक चीन हमको युद्ध में मात दे चुका था।
7) सरदार पटेल अगर भारत के प्रधानमंत्री होते तो हिन्दू मुस्लिम राजनीती कभी ना होती। क्योंकि सरदार पटेल मानते थे की कानून दोनों के लिए बराबर है चाहे वो हिन्दू होनी मुस्लिम।
आज भी भारत में ज्यादातर मुस्लिम मुस्लिम कानून (शरीयत या कुरान में लिखी बातें ) को ही मानते हैं और उसी के हिसाब से वव्यहार करते हैं।
अगर सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री होते तो भारत में हिन्दू मुस्लिम दंगे ना के बराबर होते क्योंकि दंगाई को कानून का डर होता और वो कुछ भी करने के पहले सोचते।
8) सरदार पटेल अगर प्रधानमंत्री होते तो देश के लिए जान गवाने वाले मां भारती के सच्चे वीरो को उनका सम्मान मिलता जो सिर्फ गांधी परिवार के इर्द गिर्द ही सिमट कर रह गया।
अकबर महान से पहले राणा जी की महानता को पढ़ते। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी को न्याय मिल पाता। दिल्ली में भारत को लूटने वाले मुगलों की जगह देश के वीर योद्धा के नाम पर सड़के और म्यूजियम होते।
देश की जनता को भ्रष्टाचार की इतनी लत न लगती। गुरुकुल को बंद करवाकर मदरसे नही खुलते। भगवान श्री राम जी को इंसाफ के लिए पचास साल ज्यादा इंतजार नही करना पड़ता।
नोट -:
यह प्रश्न और इसका उत्तर काल्पनिक ही हैं क्यूँकि सरदार पटेल की मृत्यु 1950 में ही हो गई थी
हालांकि नेहरू बुरे प्रधानमंत्री नहीं थे पर विदेश नीति के मोर्चे पर वो मात खा गये, पटेल वाकई लौहपुरुष थे।
Right 👍