श्री कृष्ण जी को बहुत से नामों से जाना जाता है। जैसे कान्हा, मुरारी, कृष्णा, देवकी नंदन, माखन चोर, नंद गोपाल और भी ना जानें कितने नाम। लेकिन श्री कृष्ण जी का एक नाम है जो बड़ा अजीब लगता है और वो है “रणछोड़”
श्री कृष्ण जी के इस नाम के पीछे उनकी क्या लीला थी।
श्री कृष्ण जी ने एक समय अपने शत्रु से युद्ध ना करके मैदान से भाग गए थे और उनके भागने के पीछे एक सोची समझी नीती थी। महाराजा मुचुकुंद इच्छवाकु वंश के राजा थे। यह बहुत ही पराक्रमी राजा थे और देवताओं के राजा इंद्र भी इनसे सहायता लिया करते थे।
एक समय असुरों ने देवताओं को हरा दिया तो देवताओं ने परेशान होकर राजा मुचुकुंड से सहायता मांगी। राजा मुचुकुण्ड ने देवताओं की विनती स्वीकार की और असुरों से युद्ध करने निकल पड़े। वो लगातार असुरो से युद्ध करते रहे और उन्होने हजारों वर्षों तक युद्ध किया। बाद में उन्होने कार्तिकेय जी की सहायता से असुरों को परास्त किया।
देवराज इंद्र तब उनके पास गए और हाथ जोड़ कर कहा की हे महाराज आपने हमारे लिए हजारों वर्षों तक युद्ध किया है और हम आप पर बहुत प्रसन्न हैं। चुंकि इतने सालो में आपके राज पाट सब खत्म हो गए हैं और आपके परिजन काल कवलित हो चुके हैं। आप मोक्ष को छोड़कर कोई भी वर मांग ले।
उसी वक्त सरस्वती जी उनकी बुद्धि पर विराजमान हो गई क्युकी उनको भविष्य में श्री कृष्ण द्वारा एक नेक काम करवाना था। महाराज मुचुकुंद ने कहा की हे भगवन मैं युद्ध करके थक गया हूं और मैं अब आराम करना चाहता हूं इसलिए मैं अब सोना चाहता हू।
कोई भी मेरी नींद ना तोड़े और अगर कोई तोड़े तो वो मेरे देखते ही भस्म हो जाए। देवराज इंद्र ने कहा की जैसा आपने कहा वैसा ही होगा। आप पृथ्वी पर जा कर आराम करें। महाराज मुचुकुंद धरती पर आकर एक गुफा में सो गए और कई युगों तक सोते रहे।
द्वापर युग आया और श्री कृष्ण जी ने अवतार लिया। उस समय दैत्य कालयवन ने मथुरा को घेर लिया और श्री कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। कालयवन को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त था की ना तो सूर्यवंशी, ना ही चंद्रवंशी, ना ही कोई हथियार, ना ही कोई अपने बल से उसे हरा सकता है।
श्री कृष्ण ये बात भली भांति जानते थे। श्री कृष्ण जी अकेले ही उसके सामने गए और फिर वहां से भागने लगे। कालयवन श्री कृष्ण जी को ललकारते हुए उनके पीछे भागने लगा। वह उनका पीछा करते हुए उनको कायर, डरपोक और रणछोड़ बोलता रहा। श्री कृष्ण के दिमाग में तो पहले से ही योजना थी।
वो भागते भागते उस गुफा में घुस गए जहां महाराज मुचुकुंद सो रहे थे। श्री कृष्ण ने गुफा में घुसते ही अपना वस्त्र सोते हुए महाराज पर डाल दिया और कोने में छुप गए। जैसे ही कालयवन गुफा में घुसा उसने महाराज मुचुकुंद को सोते हुए देख कर समझा की श्री कृष्ण उनसे छुप कर लेटे हैं।
उसने अभिमान और गुस्से में भरकर अपनी लातों से महाराज मुचुकुंडी पर प्रहार किए जिससे उनकी नींद टूट गई। उनको मिले आशीर्वाद के कारण जैसे ही महाराज मुचुकुंद ने कालयवन को देखा वो वहीं जल के भस्म हो गया।
तभी उन्होंने श्री कृष्ण को देखा और वो समझ गए की साक्षात विष्णु जी ने अवतार लिया है।
वो श्री कृष्ण जी को निहारने लगे और उनकी आंखों में आंसू थे। श्री कृष्ण जी ने महाराज मुचुकुंद को गले से लगा लिया। इस घटना के बाद ही श्री कृष्ण जी का नाम रण छोड़ पड़ा। श्री कृष्ण जी की लीला सिर्फ वो ही समझ सकते हैं। आपके जीवन में होने वाली हर अच्छी और बुरी घटना के पीछे ईश्वर की कोई ना कोई मंशा छुपी होती है जो हम मनुष्य नहीं समझ सकते।
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