अर्जुन को महाभारत के युद्ध का सर्वश्रेष्ठ योद्धा माना जाता है। पूरा महाभारत का युद्ध सिर्फ अर्जुन के चारों तरफ ही घूमता रहा। बहुत से विद्वान कहते हैं की अर्जुन अजेय थे और उनको कृष्ण के अलावा कोई हरा नहीं सकता था
यहां तक की देवराज इंद्र में भी इतना सामर्थ्य नहीं था। तो आज हम आपको बताएंगे की अर्जुन को महाभारत के युद्ध में कौन कौन हरा सकता था या किस किस ने अर्जुन को युद्ध में हराया।
अर्जुन पूरे महाभारत में कई बार परास्त हुए तथा चार बार मृत्यु को भी प्राप्त हुए जिसमे से तीन बार उनको पुनर्जीवन मिला। आईए जानते हैं सभी घटना को विस्तार से।
यह घटना वनवास की है जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए शिव जी और इंद्र की तपस्या करने को बोला था।
इंद्र देव को प्रसन्न करने के बाद अर्जुन शिव जी की तपस्या में लीन थे। शिव जी ने अर्जुन की परीक्षा लेने की सोची और एक शिकारी का रूप लेकर अर्जुन के पास गए और एक राक्षस रूपी सुअर को अर्जुन की तरफ भेजा।
अर्जुन ने सुअर को आते देख कर वाण चला दिया और उसी वक्त शिव जी जो की उस वक्त शिकारी के रूप में थे उन्होंने भी वाण चला दिया वो सुअर वहीं मर गया।
अब सुवर को दो वाण लगे और अब ये निर्णय करना था की सुवर की मृत्यु किस वाण से हुई। चूंकि अर्जुन को विश्वास था की कोई अन्य साधारण शिकारी उसका सामना नहीं कर सकता इसलिए उसने कहा की सुवर को उसने मारा।
अब अनिर्णय की स्तिथि में दोनों के बीच युद्ध की बात तय हुई। सबसे पहले शिव जी जो की शिकारी के वेश में थे उन्होने अर्जुन को धनुर्विद्या में पराजित किया।
अर्जुन यह हार सह ना सके और शिकारी को मल्ल युद्ध के लिए आमंत्रित किया। शिकारी ने अर्जुन को मल्ल युद्ध में बुरी तरह पराजित किया और इस तरह उठा कर पटका की अर्जुन की मृत्यु हो गई।
स्वर्ग लोक आप शशरीर नहीं जा सकते इसलिए शिव जी ने अर्जुन को मारकर स्वर्ग लोक भेज दिया ताकि वो वहां सारे दिव्यशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करके वापस आ सकें।
जब अर्जुन स्वर्ग लोक में इंद्र से सारे दिव्यशास्त्र सीख लिए तो शिव जी ने अर्जुन को पुनः जीवित कर दिया और इनाम स्वरूप पशुपशास्त्र भी दिया।
यमराज के हाथों मृत्यु
अर्जुन के परास्त होने की दूसरी घटना भी वनवास के दौरान की है। जब यमराज ने युधिष्ठिर की परीक्षा लेने के उद्देश्य से एक तालाब को विषैला कर दिया था।
जिसमें किसी को भी पानी पीने से पहले यक्ष द्वारा पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर देना था। उत्तर ना देने की स्तिथि में उसकी मृत्यु तय थी।
इस तालाब में एक एक करके सारे पांडव बिना उत्तर दिए पानी पीने लगे और सभी की मृत्यु हो गई। सिर्फ युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का सही उत्तर दिया और फिर यक्ष ने सभी पांडवो को जीवित कर दिया। इस तरह दूसरी बार अर्जुन की पराजय हुई।
बबरूवाहन द्वारा पराजय
महाभारत युद्ध के बाद में युधिष्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ किया। इसमें अर्जुन उत्तर दिशा में यज्ञ की पताका लेकर निकले। वहां अर्जुन का सामना एक युवराज बालक से हुआ जिसने अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा रोक लिया था।
अर्जुन को लगा की वो इस बालक को आसानी से युद्ध में हरा देगा। लेकिन इस युवराज ने एक ही तीर से अर्जुन का सर धड़ से अलग कर दिया। यह बालक चित्रांगदा का पुत्र बबरूवहन था।
चित्रांगदा को जब ये पता चला तो उन्होंने बबरुवाहन को बताया कि अर्जुन तुम्हारे पिता हैं क्योंकि चित्रांगदा अर्जुन की पत्नी थी।
उस वक्त अर्जुन की दूसरी पत्नी उलूपी ने नागमणि की सहायता से अर्जुन को पुनर्जीवित किया था। इस तरह अर्जुन तीसरी बार पराजित हुआ।
बर्बरीक की क्षमता
अर्जुन को परास्त करने की क्षमता बर्बरीक में भी थी। बर्बरीक भीम के पुत्र घटोत्कक्ष का पुत्र था। बर्बरीक बहुत ही तपस्वी और महान योद्धा था।
उसको ऐसी सिद्धि प्राप्त थी की वो सिर्फ दो वाणों से अपने सारे शत्रुओं का संहार कर सकता था। श्री कृष्ण जी को पता था की बर्बरीक अपने वचन अनुसार कमजोर पक्ष की तरफ से युद्ध करेगा।
एक समय जब कौरव कमजोर पड़ गए थे तब बर्बरीक का कौरव की तरफ से युद्ध करना तय था। उस वक्त कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में बर्बरीक से उसका सर मांग लिया था।
जिससे वह युद्ध ना कर पाए। अगर बर्बरीक युद्ध करता तो वह अर्जुन समेत पूरे पांडव को दो ही वाण में खत्म कर देता। इस तरह अर्जुन को बर्बरीक बहुत ही आसानी से हरा देता।
अश्ववस्थामा का पराक्रम
अश्ववस्थामा शिव जी का ही रूप थे। महाभारत युद्ध के दौरान जब अश्ववस्थामा को पता चला की उनके पिता की मृत्यु हो गई है तो वह बहुत ही क्रोधित हो गए और उन्होंने पांडव सेना की तरफ नारायणअस्त्र छोड़ दिया।
इस अस्त्र का काट किसी को नहीं पता था सिर्फ श्री कृष्ण को पता था। यदि कोई नारायणअस्त्र की शरण में चला जाय और अपने सारे हथियार डाल दे तो यह अस्त्र विफल हो जायेगा।
कृष्ण ने सारी पांडव सेना को अस्त्र डालने को और नारायणअस्त्र की शरण में जानें को कहा। जिसके कारण यह अस्त्र विफल हो गया।
अगर कृष्ण जी यह बात ना बताते तो अर्जुन के साथ साथ पूरी पांडव सेना का विनाश तय था। इस तरह अश्ववस्थामा भी अर्जुन को आसानी से हरा सकता था।
अर्जुन के गुरु
अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य और भीष्म पितामह भी अर्जुन को आसानी से हरा सकते थे। लेकिन उन्होंने कभी भी अर्जुन के विरुद्ध पूरे मन से युद्ध नहीं किया। क्योंकि अर्जुन दोनों का प्रिय शिष्य रहा था और दोनों जानते थे की अर्जुन सत्य की तरफ से लड़ रहा है।
इस तरह अर्जुन को हराने का सामर्थ्य इतने वीर पुरुषों में था। मैं यहां कर्ण का उल्लेख नहीं करूंगा क्युकी उसे अर्जुन ने कई बार हराया था।
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