आजकल
भारत में जिस बात ने हिंदुओ को अलग अलग कर रखा है वो है जाति।
हमारा पूरा
समाज जो पहले एक हुआ करता था वो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र में बंट
चुका है।
हर कोई खुद को उच्च और दुसरे को नीच बताने में लगा हुआ है।
जाति
प्रथा क्या है अथवा जाति प्रथा का अर्थ क्या है इसको जाने बिना लोग भेदभाव
करने लगे।
यहां तक की लोगों की जाति के आधार पर राजनैतिक पार्टियां भी बन
गई हैं की तुम शूद्र हो तो मुझे वोट दो, तुम वैश्य हो तो मुझे वोट दो, तुम
ठाकुर हो तो तुम मुझे वोट दो और अगर तुम ब्राह्मण हो तो मुझे वोट दो।
सारे
हिन्दू, जाति का पूरा सच जाने बिना आपस में ही लड़ा करते हैं।
क्या हम
जानते हैं की जाति प्रथा कब से बनी ?
इसका सबसे ज्यादा फायदा उठाती है ये
राजनैतिक पार्टियां और दुसरे मज़हब के लोग।
यहां मैं जाति व्यवस्था के बारे
में ज्यादा नहीं बताऊंगा क्युकी वो तो सबको
पता है।
यहां मैं बात करूंगा की आखिर जाति व्यवस्था का कारण क्या था और ये
कहां पर गलत हो गई।
जाति व्यवस्था का अर्थ Caste system in India in hindi
आदि नहीं होते थे तो आपके बच्चे का जन्म जो दाई करवाती थी वो किस जाति की
होती थी?
दूसरे से जुड़े रहते है। अब आप खुद बताइए इसमें कहां है छुआ छूत?
हिन्दू धर्म में जाति व्यवस्था
लिखा है की श्री राम जब शिक्षा लेने गुरुकुल गए तो वहां उनके साथ हर जाति
के लोग शिक्षा ले रहे थे।
मित्र थे और वनवास जाते हुए और वापस लौटते हुए वो निषादराज से मिलते हुए
गए।
हमारे धर्म ग्रंथों में जाति के हिसाब से कोई भेदभाव नहीं किया गया तो हम
कब से जाति पाती, ऊंच नीच मानने लगे।
आक्रमणकारियों और अंग्रेजो ने डाल दिया।
बीच फूट नहीं डालेंगे तब तक इन पर राज नहीं कर सकते।
के लालच दे कर अपने हिसाब से जाति प्रथा को जन्म के आधार पर कर दिया।
ये जन्म के आधार पर ना होकर कर्म के आधार पर था।
काम लालची हिंदुओं ने भी किया जो खुद को ऊंच और दूसरे को नीच मानने लगे।
प्रथा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आई और लोगों ने इसका सच जानने की कोशिश भी नही
की।
किया।
कुएं का पानी लेने देना और शुद्रों को मंदिर में ना जाने देना ये सब
मुगलों द्वारा फैलाया हुआ एक जाल था जिसमे हिंदू आसानी से फसता चला गया।
बोलते हैं की उस किताब में ये लिखा है तो आपको बता दू की भारतीय इतिहास को
इतनी बार तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया और लिखा गया है की उसका असली सार कहीं
खो गया।
ब्राम्हणौ ने समाज को जोड़ा हैं तोड़ा नहीँ
ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े दलित को जोड़ते हुये
अनिवार्य किया कि दलित स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हे पर ही सभी शुभाशुभ
कार्य होगें।
इस तरह सबसे पहले दलित को जोडा गया धोबन के द्वारा दिये गये
जल से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा. कुम्हार द्वारा दिये
गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को
जोड़ा
के पत्तों से पत्तल/दोनिया बनाते है यह कहते हुये
जोड़ा कि इन्हीं के बनाए गये पत्तल/दोनीयों से देवताओं का पुजन सम्पन्न
होगे.
जल से देवताओं के पुजन होगें.
हुये जोड़ा कि इनके द्वारा
बनाये गये आसन/चौकी पर ही बैठकर वर-वधू देवताओं का पुजन करेंगे
हुये कहा गया कि इनके द्वारा सिले हुये वस्त्रों (जामे-जोड़े) को ही पहनकर
विवाह सम्पन्न होगें.
उस हिन्दु से मुस्लिम बनीं औरतों को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके
द्वारा पहनाई गयी चूडियां ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी.
है,को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा बनाये गये उपहारों के बिना
देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल सकता….
जो गंदगी साफ और मैला ढोने का काम किया करते थे उन्हें यह कहकर जोड़ा गया
कि मरणोंपरांत इनके द्वारा ही प्रथम मुखाग्नि दिया जायेगा.
सभी वर्ग जब आते थे तो घर कि महिलायें मंगल गीत का गायन करते हुये उनका
स्वागत करती है और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर बिदा करती थी.
का दोष कहाँ है?…हाँ ब्राह्मणों का दोष है कि इन्होंने अपने ऊपर
लगाये गये निराधार आरोपों का कभी खंडन नहीं किया,
अपमान का कारण बन गया। इस तरह जब समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के
बाद ब्राह्मण नाई से पुछता था कि क्या सभी वर्गो कि उपस्थिति हो गयी है…?
भारत में जाति प्रथा का प्रभाव
हो, तुमको ये लोग सम्मान नही देते, ईसाई धर्म को अपना लो यहां सब बराबर हैं
और कम पड़े लिखे हिंदू उनकी चिकनी चुपडी बातों में आकर अपना धर्म परिवर्तन
करवा लेते हैं और बाद में अपने ही धर्म की बुराई करते हैं।
लोगों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित करवा दिया गया। यही लोग अब किसी विशेष
पार्टी के वोट बैंक बन जाते हैं।
जाति व्यवस्था की बुराई किया करेंगे।
को अहीर बोलो तो उसको बुरा लग जायेगा क्योंकि उसे उस शब्द का सही अर्थ नही
पता।
समुदाय के रूप में जाना जाता है।
स्वयं भगवान श्री कृष्ण जी के नाम के साथ जुड़ा है।
तरह दलित शब्द, क्या आपको पता है दलित शब्द को सबसे पहले 1831 में ईस्ट
इंडिया कंपनी के आर्मी अफसर जे. जे. मोल्सवर्थ द्वारा किया गया था।
प्राचीन ग्रंथो में शुद्र शब्द का वर्णन है लेकिन उस शब्द को कभी भेदभाव
अथवा अपमानजनक शब्द की तरह नहीं इस्तेमाल किया गया।
शब्द के लिए था वही सम्मान शुद्र के लिए भी था।
के लिए भारतीय में फूट डालने के लिए इन सब शब्दों को गढ़ा।
सब मुस्लिमो और अंग्रेजो का फूट डालो और राज करो का तरीका था।
पर राज कर सकें। अन्यथा हमारे सनातन धर्म में किसी को भी ऊंच या नीच नही
माना गया।
नहीं था।