दुनिया के 10 सबसे खतरनाक वायरस कौन से है

वायरस का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में कोरोना वायरस ही आता है।

2020 से फैलना शुरू हुए इस वायरस ने पूरी दुनिया में तबाही मचा दी।

लाखों लोग मारे गए और अभी भी यह अपना म्युटेशन करके लोगों को बीमार कर रहा है।

कोरोना वायरस की तरह ही ना जाने कितने वायरस हैं जो समय समय पर मानव जाति के लिए संकट पैदा किया करते हैं।

पूरी दुनियां में इस वक्त करीब करीब चार लाख ज्ञात वायरस हैं और इनकी संख्या आने वाले समय में बढ़ भी सकती है।

आज हम ऐसे ही कुछ खतरनाक वायरस के बारे में जानकारी देंगे जो इंसान के लिए बहुत ही खतरनाक हैं।

एचआईवी वायरस (HIV)

एचआईवी वायरस सबसे पहले चिंपेंजी में में हुआ था उसके बाद यह गोरिल्ला फिर बन्दर फिर इंसानों में आया।

इस वायरस की उत्पत्ति मध्य अफ्रीका के देश कांगो से हुई।

इसका सबसे पहला केस कांगो में सन् 1959 में मिला था जब इसके कारण एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।

हालांकि तब ये पता नही था की व्यक्ती की मौत एचआईवी से हुई है वो तो कई सालों बाद में उस इंसान के प्रिजर्व सैंपल से पता चला की उसकी मौत एचआईवी से हुई थी।

भारत में सबसे पहला एचआईवी का केस सन् 1986 में आया।

इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति की 98% मामलों में मौत हो जाती है।

इसका ना तो अभी तक कोई सटीक ईलाज खोजा जा सका है और ना ही इसकी कोई वैक्सीन बन सकी है।

पूरी दुनियां में हर साल लाखों लोग एचआईवी के कारण मर जाते हैं।

पूरे विश्व के एचआईवी मरीजों का 10% मरीज भारत में है।

एचआईवी हमारे शरीर में T सैल्स को नष्ट कर देता है।

T सैल्स हमारे शरीर की इम्यूनिटी या प्रतिरक्षा प्रणाली होती है जब T सैल्स ही नहीं रहेंगे तो हमारा शरीर छोटी-छोटी बीमारियों से भी नहीं लड़ सकता और इन्ही सब बीमारियों से इंसान की मौत हो जाती है।

हालांकि एचआईवी होने के बाद इंसान कई सालों तक और कई मामलों में 20 साल से ज्यादा भी जिन्दा रह सकता है।

लेकिन एचआईवी अगर एड्स में परिवर्तित हो जाय तो इंसान अधिकतम 2 या 3 साल तक ही जिन्दा रह पाता है।

एचआईवी वायरस की वैक्सीन ना बन पाने का सबसे बड़ा कारण है इसके वायरस का म्यूटेशन, यह वायरस बहुत तेजी से म्यूटेशन करता है की इसकी वैक्सीन बनाना संभव नहीं हो पा रहा।

मारबर्ग वायरस (Marburg Virus)

मारबर्ग वायरस का मुख्य सोर्स अफ्रीकन फ्रूट बैट (एक अफ्रीकन चमगादड़) है।

दुनिया के शीर्ष 10 सबसे खतरनाक वायरस
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दुनिया का सबसे खतरनाक वायरस कौन सा है?

यह Virus फ्रूट बैट से बंदरो में फैला और फिर इंसानों में फैला।

इसका सबसे पहला केस 1967 में मिला जब एक जर्मनी की प्रयोगशाला में यह लीक हो गया था।

उस वक्त उस लैबोरेटरी में काम करने वाले सात लोगों की मौत हो गई थी।

मारबर्ग Virus के इन्फेक्शन के कारण मरीज को तेज बुखार आता है और फिर प्लेटलेट्स काउंट बहुत तेजी से गिरते हैं जिसके कारण इंटरनल ब्लीडिंग होने लगती है और मरीज की मौत हो जाती है।

इससे संक्रमित होने के बाद मरीज की मृत्यु दर लगभग 88% होती है।

यह वायरस इबोला Virus के परिवार से ही संबंधित है।

इसके फैलने का प्रमुख कारण अफ्रीकन माइंस और गुफाओं में काम करने वाले इंसान हैं जो फ्रूट बैट या उससे संबंधित वस्तुओं के सम्पर्क में आकर इसके वाहक बन जाते हैं और फिर दूसरों को भी फैला देते हैं।

यह Virus इंसान से इंसान को ब्लड, बॉडी फ्लूइड (पेशाब, लार, पसीना, स्टूल, सीमेन, मां के दूध से, आंख व नाक के म्यूकस) और एक दूसरे के सम्पर्क से फैलता है।

इसका मुख्य लक्षण तेज बुखार, सर दर्द, मांशपेशियो में दर्द, उल्टी आना, डायरिया और बदन दर्द हैं।

इसकी जांच ELISA या PCR मैथड से की जाती है।

इसका कोई ईलाज नहीं है इसलिए मरीज को उसके लक्षण के हिसाब से दवाई दी जाती है।

जरूरत पड़ने पर ऑक्सीजन, प्लेटलेट्स चढ़ाना और इलेक्ट्रोलाइट्स मरीज को दिए जाते हैं।

इबोला वायरस (Ebola Virus

इबोला वायरस एक बहुत ही खतरनाक वायरस है।

इससे संक्रमित होने के बाद लगभग 50% मरीजों की मृत्यु हो जाती है।

यह वायरस संक्रमित जानवरों जैसे बन्दर, चिम्पांजी और चमगादड़ से इंसानों में फैलता है।

इबोला वायरस संक्रमित व्यक्ती के बॉडी फ्लूइड या ब्लड के सम्पर्क में आने से फैलता है।

इबोला वायरस में भी तेज बुखार, सरदर्द, उल्टी, बदन दर्द जैसे लक्षण होते हैं लेकिन इसकी सही पहचान के लिए आपको ब्लड टेस्ट करवाना पड़ेगा।

यह वायरस पानी, हवा, भोजन और मच्छर से नहीं फैलता।

इस वायरस से संक्रमित होने पर मरीज को इंटरनल ब्लीडिंग हो जाती है और उसकी मृत्यु हो जाती है।

इबोला का पहला मामला सन् 1976 में कांगो में पाया गया था और इसका नाम वहां बहने वाली इबोला नदी पर रखा गया है।

इबोला का सबसे भयंकर रूप 2014 में सामने आया था जब अफ्रीका में हजारों लोगों की मौत इस वायरस के कारण हो गई थी।

हालांकि अब इबोला वायरस से बचने के लिए वैक्सीन उपलब्ध है।

रेबीज (Rabies)

रेबीज का इतिहास बहुत ही पुराना है।

सबसे पहला रिकॉर्डेड रेबीज का मामला 2300 BC में बेबीलोन (ईराक) में पाया गया था।

कुत्तों, बिल्ली, चूहों के काटने से फैलने वाला ये रोग बहुत ही खतरनाक होता है।

रेबीज वायरस हमारे सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम और ब्रेन को प्रभावित करता है।

हर साल पूरी दुनिया में लगभग 60,000 लोग रेबीज के कारण मर जाते हैं।

इनमें से 99% लोगों को रेबीज पागल कुत्ते के काटने से होता है।

रेबीज के बारे में सबसे खतरनाक बात ये है की अगर एक बार मरीज को रेबीज के लक्षण आ जाएं तो मरीज बच नहीं सकता।

इसलिए जैसे ही आपको कोई कुत्ता या जानवर काटे आपको तुरंत इसके इंजेक्शन लगवा लेने चाहीए।

अगर आपने देर कर दी और इसके लक्षण दिख गए तो बचना लगभग नामुमकिन है।

हालांकि अब रेबीज की वैक्सीन इंसानों और पालतू जानवरों के लिए उपलब्ध है।

रेबीज के लक्षण है नींद ना आना, बेचैनी, घबराहट, हिंसात्मक और उग्र व्यवहार, निगलने में दिक्कत, पानी का डर, भ्रमित होना और मुंह में बहुत लार बनना।

रेबीज के लक्षण आने के बाद मरीज 2 से 10 दिनों के अंदर ही मर जाता है।

स्मॉलपॉक्स (Smallpox)

स्मॉलपॉक्स अब पूरी तरह से खत्म हो चुकी है लेकिन यह Virus से फैलने वाली बहुत ही खतरनाक बीमारी थी।

इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की सिर्फ बीसवीं सदी में ही तीस करोड़ लोगों की जान इस बीमारी के कारण गई।

मानव इतिहास में सबसे ज्यादा मौतें इसी Virus के कारण हुई हैं।

यह बीमारी वैरिओला Virus (Variola Virus) के कारण होती है।

सन् 1999 में इसके पूरी तरह खात्मे के बाद वैरिओला Virus के कुछ सैंपल्स दुनिया के सिर्फ दो ही लैब में रखें गए हैं ताकि इनपर रिसर्च की जा सके।

यह सैंपल अमेरिका और रशिया के पास हैं।

स्मॉलपॉक्स में मरीज को बुखार, थकान और बदन दर्द होता था और बाद में शरीर में तरल पदार्थ से भरे दाने पड़ जाते थे जिसने बाद में मवाद भर जाता था।

यह दाने पूरे शरीर में पड़ जाते थे।

यह एक संक्रामक रोग था जिसमे मरीज की मृत्यु दर लगभग 30% थी।

आजकल लोग स्मॉलपॉक्स और चिकनपॉक्स को एक ही समझ लेते हैं क्योंकि दोनो के नाम में पॉक्स लगा है और दोनो के लक्षण लगभग एक समान होते हैं लेकिन ये दोनो अलग-अलग Virus के कारण फैलते हैं।

चिकनपॉक्स इतना खतरनाक नहीं होता और यह थोड़े दिनों में ठीक हो जाता है जबकि स्मॉलपॉक्स अब होता ही नहीं क्युकी यह सालों पहले ही खत्म हो चुका है।

हंता वायरस (Hanta Virus)

हंता वायरस सबसे पहले साउथ कोरिया की एक नदी हांटन (Hantan River) के पास पाया गया था और इसी नदी के नाम पर इस Virus का नाम हंता Virus कर दिया गया।

यह Virus चूहों से फैलता है लेकिन यह वायरस जानवरों और चूहों पर कोई असर नहीं करता।

हंता Virus चूहों के मल मूत्र में पाया जाता है।

जब कोई हंता Virus से संक्रमित चूहा मल मूत्र विसर्जित करता है और कोई इंसान इस मल के संपर्क में आ जाता है तो उसको हंता Virus का संक्रमण हो जाता है।

यह Virus धूप के सम्पर्क में आते ही खत्म हो जाता है।

यह Virus इंसान से इंसान को नहीं फैलता।

यह Virus हमारे फेफड़ों को निशाना बनाता है और इस वायरस से संक्रमित 40% मरीजों की मृत्यु हो जाती है।

इस Virus के कारण हम फ्लू के जैसे लक्षण आते है जैसे बुखार, सरदर्द, बदनदर्द, मांशपेशियो में दर्द, उल्टी इत्यादि और बाद में मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और हार्ट की धड़कने बढ़ जाती है।

मरीज के फेफड़ों में पानी भरने लगता है और फिर धीरे-धीरे करके मरीज की मृत्यु हो जाती है।

हंता Virus की ना तो कोई वैक्सीन है और ना ही कोई ईलाज।

इससे संक्रमित होने पर ज्यादातर मामलों में मरीज को आईसीयू में भर्ती करवाना पड़ता है।

हंता वायरस का पहला मामला 1978 में साउथ कोरिया में पाया गया था।

उसके बाद सन् 1993 में यह अमेरिका में तेजी से फैला और सैकड़ों लोगों को संक्रमित किया जिसमें 36% मरीजों की मौत हो गई।

हंता Virus के भारत में ज्यादा मामले नहीं पाए गए है।

सिर्फ कुछ मामले ही 2008 में पाए गए थे।

इन्फ्लूएंजा (Influenza)

इंफ्लूएंजा H1N1 वायरस के कारण फैलता है हालांकि इसका प्रारम्भ कहां से हुआ ये अभी तक पता नहीं चल पाया है।

इसका पहला ज्ञात मामला सन् 1918 में अमेरिका में पाया गया था।

हर साल दुनिया में इंफ्लूएंजा के कारण पांच लाख से ज्यादा लोग मर जाते हैं।

हर बार इंफ्लूएंजा का कोई नया स्ट्रेन आ जाता है।

कभी-कभी ये ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाता और कभी-कभी ये बहुत भयंकर रुप ले लेता है जैसे सन् 1918 का स्पेनिश फ्लू जिसके कारण पूरे विश्व की 40% आबादी संक्रमित हो गई थी और लगभग 5 करोड़ लोग मारे गए थे।

स्वाइन फ्लू भी इन्फ्लूएंजा ही है।

यह Virus हमारे श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है।

इन्फ्लूएंजा Virus इंसान से इंसान को फैलता है।

इन्फ्लूएंजा हम सभी को साल भर में एक बार जरूर हो जाता है और ये हफ्ते भर में ठीक हो जाता है।

लेकीन कई बार इसके नए स्ट्रेन म्यूटेशन करके भयंकर तबाही ला देते हैं।

इन्फ्लूएंजा में हमें सर्दी, बुखार, जुकाम, खांसी, बदन दर्द आदि लक्षण होते हैं।

इसको आप घर में ही कुछ सावधानियां बरत के ठीक कर सकते हैं।

लेकिन अगर आपको सांस लेने में दिक्कत हो तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

इन्फ्लूएंजा की वैक्सीन उपल्ब्ध है लेकिन हर साल यह Virus नए स्ट्रेन के साथ आ जाता है इसलिए इसकी वैक्सीन हर साल लगवानी पड़ती है।

इंफ्लूएंजा में उन लोगों को ज्यादा खतरा होता है जिनकी उम्र 65 साल से ऊपर या बच्चे जो 5 साल से कम उम्र के होते है।

इसके अलावा जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है या जिनको पहले से कोई लंबी बिमारी है उनको इससे ज्यादा खतरा होता है।

डेंगू वायरस (Dengue Virus)

डेंगू की बीमारी मादा एडीज मच्छर के काटने से होती है और यह Virus चार प्रकार का होता है,डेंगू 1, 2, 3, 4.

डेंगू का सर्वप्रथम उल्लेख चीन की किताबों में 420 ईसा पूर्व में मिलता है लेकिन यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तेजी से फैलना शुरू हुआ।

भारत में डेंगू की तरह ही एक फीवर चेन्नई में सन् 1780 में फैला था लेकिन इसकी कोई रिकॉर्डेड जानकारी नहीं है।

भारत में रजिस्टर्ड डेंगू का केस सबसे पहले कोलकता में 1963 में पाया गया।

हर साल लगभग 10 करोड़ लोग पूरे विश्व में डेंगू से संक्रमित होते हैं जिनमें से 5% की मौत हो जाती है।

डेंगू को हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं क्युकी इसमें पूरे शरीर में दर्द होता है।

इसके लक्षणों में बुखार, सर दर्द, बदन दर्द, जोड़ो में दर्द और आंख में दर्द शामिल है।

यह Virus हमारे प्लेटलेट्स को नष्ट कर देता है जिससे की हमारे शरीर में प्लेटलेट्स की कमी हो जाती है और इंसान इंटर्नल ब्लीडिंग से मर जाता है।

डेंगू का कोई निश्चित ईलाज या वैक्सीन नहीं है।

डेंगू को इसके लक्षणों के अनुसार ही ईलाज किया जाता है।

रोटावायरस (Rotavirus)

यह Virus इतना खतरनाक होता है की पूरे विश्व में हर साल पांच लाख बच्चे इस Virus के कारण मर जाते हैं।

इसके कारण सन् 1900 के आस-पास पैदा होने वाले 1000 बच्चों में 100 की मौत डायरिया से हो जाती थी लेकिन तब इसका कारण पता नहीं था।

रोटावायरस की खोज सबसे पहले 1973 में हुई थी।

इसके Virus का आकार पहिए (लैटिन में पहिए को रोटा बोलते हैं) की तरह होता है इसलिए इसका नाम रोटावायरस पड़ा।

यह Virus गंदगी से फैलता है और इसके इंफेक्शन के कारण बच्चों में डायरिया हो जाता है।

जिसमें अगर समय पर ईलाज ना किया जाय तो बच्चों की डिहाइड्रेशन से मृत्यु हो जाती है।

पूरे विश्व में पांच साल से कम के बच्चों को एक बार रोटावायरस इन्फेक्शन जरूर होता है।

आजकल रोटावायरस की वैक्सीन उपलब्ध है।

कोरोना वायरस (Coronavirus)

पूरी दुनियां मे तबाही मचाने वाले इस Virus के कई स्ट्रेन होते हैं और हम यहां इसके तीन मुख्य स्ट्रेन के बारे में चर्चा करेंगे।

सार्स (SARS)

सार्स को हम कोरोना Virus का बाबा भी बोल सकते हैं।

सबसे पहले सार्स का मामला चीन के गुआंगडांग में सन् 2003 में आया जिसमें लगभग 770 लोगों की मौत हुई थी।

यह Virus चमगादड़ों से इन्सान में आया।

यह हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है।

यह एक संक्रामक रोग है जो एक इंसान से दुसरे इंसान तक पहुंचता है।

सार्स को Severe Acute Respiratory Syndrome Coronavirus भी कहते हैं।

सार्स हवा से फैलने वाला वायरस है।

इसके सारे लक्षण कोविड-19 की तरह ही होते हैं।

सार्स से संक्रमित हुए मरीजों में 10% मरीजों की मौत हो जाती है और सार्स की वैक्सीन उपल्ब्ध है।

मेर्स (MERS)

मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोविड की फैमिली का ही Virus है।

यह भी हमारे फेफड़ों को प्रभावित करता है।

MERS से संक्रमित 35% मरीजों की मृत्यु हो जाती है।

इसके लक्षण भी Covid-19 की तरह होते हैं।

MERS सबसे पहले सऊदी अरब में पाया गया, यह ऊंट से इन्सान में फैला।

हालांकि यह Virus इंसानों से इंसानों में नहीं फैलता।

इसकी कोई वैक्सीन नहीं है और इसका ईलाज लक्षणों के आधार पर किया जाता है।

सऊदी अरब में MERS से लगभग 1000 मौतें सन् 2012 में हुई थीं।

कोविड-19 (Covid-19)

दुनिया में सबसे ज्यादा तबाही मचाने वाला Virus Covid-19 का पहला मामला सन् 2019 दिसंबर में चीन की वुहान लैब में आया था।

यहां से यह Virus पूरी दुनिया में फैला और अब तक लगभग 71,00,000 लोग इससे मर (नवंबर 2023 तक) चुके हैं।

यह Virus हमारे फेफड़ों पर हमला करता है।

अभी भी इस Virus के कारण लगातार मौतें हो रहीं हैं।

लेकिन अब इस Virus की वैक्सीन उपल्ब्ध है।

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