आपको लग रहा होगा की अकबर का मकबरा तो आगरा से चार किलोमीटर दूर सिकंदरा में है और उसमें अकबर की कब्र है लेकिन आपने पूरा इतिहास नहीं पढ़ा की अकबर का मकबरा को खोद कर उसकी हड्डियों को जला दिया गया था।
आईए जानते है इतिहास के इस पन्ने को
क्यों खोदा गया था अकबर का मकबरा
जब अकबर जीवित था तो उसने सिकंदरा में एक महल का निर्माण कार्य शुरू करवाया था लेकिन वह भवन बनने से पहले ही अकबर की मृत्यु हो गई थी और बाद में अकबर के पुत्र जहांगीर ने इस भवन का निर्माण कार्य पूरा करवाया।
इसी भवन को अब अकबर का मकबरा कहते हैं जिसमें अकबर की कब्र थी।
औरंगजेब और जाटों के बीच आए दिन छोटी मोटी लड़ाईयां हुआ करती थीं।
जाटों की तरफ से गोकुल जाट और उदय सिंह औरंगजेब की नाक में दम किए हुए थे और कई इलाकों पर कब्जा कर लिया था।
सन् 1669 में औरंगजेब ने एक बड़ी सेना के साथ उन कब्जा किए हुए इलाकों पर हमला बोल दिया और धोखे से गोकुल जाट और उदय सिंह को बंदी बना लिया।
बंदी बनाने के कुछ समय बाद सन् 1670 में औरंगजेब ने इन दोनों को फांसी पर लटका दिया।
जाट उस वक्त तो शांत रहे लेकिन धीरे-धीरे करके जाटों ने अपनी सेना बनानी शुरू की और जाट नेता राजाराम के नेतृत्व में गोरिल्ला पद्धति से युद्ध करना शुरू किया।
जाट नेता राजाराम छोटी सी सेना लेकर युद्ध करते और फिर मारकाट मचा कर भाग जाते थे।
राजाराम ने औरंगजेब को बहुत नुकसान पहुंचाया।
राजाराम की वीरता की चर्चा दूर दूर तक होती थी और मुग़ल शासक उनसे कांपने लगे थे।
जिस युद्ध और अत्याचार के बीज औरंगज़ेब ने बोए थे उसे राजाराम ने जड़ सहित नष्ट कर दिया था।
औरंगज़ेब के इस्लामी अत्याचार, हिन्दू मन्दिरों को नष्ट करना और मन्दिरों की जगह पर इस्लामी मस्जिदों को बनाने से जनता के मन में बदले और इस्लाम के प्रति घृणा की भावना पनप चुकी थी।
इस कारण से लोग मुग़ल शासन के विरुद्द विद्रोह करने लगे थे।
सन् 1685 में आगरा में हुए युद्ध में राजाराम ने आगरा के फौजदार शाइस्ता खान को हराकर आगरा पर कब्जा कर लिया और 200 मुगल सैनिकों को मार डाला।
राजाराम की सेना ने काँसे के विशालकाय फाटकों को तोड़ा।
सैनिकों ने बेशकीमती रत्नों और सोने-चाँदी के बने पत्थरों को उखाड़ लिया और उसे उन्होंने नष्ट कर दिया था।
आगरा पर कब्जे के बाद राजाराम ने मुगलों को अपमानित करने के लिए अकबर का मकबरा पर हमला बोल दिया और अकबर का मकबरा को खोदकर उसमें से अकबर की हड्डियां निकाल लीं और सबके सामने अकबर की हड्डियों में आग लगाकर अकबर की हड्डियों की राख को पैरों से मसल दिया, यही हाल जहांगीर की कब्र के साथ भी किया गया था।
इस तरह उस वीर जाट ने अपने मित्र की मौत का बदला अकबर की कब्र खोद कर लिया।
इससे पूरे मुगल साम्राज्य में हड़कंप मच गया और औरेंजेब ने जाट नेता राजा राम को मारने के लिए सेना भेज दी लेकिन राजाराम वहां से सफलतापूर्वक निकल गए।
सन् 1688 के समय चौहानों और शेखावत के बीच युद्ध चल रहा था और चौहानों ने राजाराम से सहायता मांगी।
राजा राम चौहानों की तरफ से युद्ध करने को तैयार हो गए इससे शेखावत नाराज हो गए और उन्होंने औरंगजेब से सहायता मांगी।
युद्ध के समय छुपकर एक मुगल सैनिक ने उनके सीने में गोली मार दी और जाट नेता राजाराम 4 जुलाई 1688 को वीरगति को प्राप्त हुए।
राजाराम का सिर कलमकार औरंगज़ेब के दरबार मे भेजा गया था।
अलवर जिले के पास हरसोली गाँव में उनकी समाधि है।
राजाराम की पत्नी की समाधि जिला भरतपुर के पास गाँव सिनसिनी में है।
इस घटना के साल में इतिहासकारों का विभिन्न मत है।
कई इतिहासकार इसे 1688 की घटना मानते हैं और कई इसे 1691 की घटना मानते हैं।
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