आज पाकिस्तान आर्थिक रूप से एक कंगाल देश हो चुका है और वह अपनी जनता को भरपेट भोजन देने में भी सक्षम नहीं है।
पाकिस्तान हर क्षेत्र में भारत से बहुत पीछे छूट चुका है।
अपने इस्लामिक और कट्टरपंती नियमों के कारण पाकिस्तान की यह दुर्दशा हुई है, लेकिन पाकिस्तान हमेशा ऐसा नहीं था।
एक समय ऐसा भी था जब पाकिस्तान भारत से बहुत से क्षेत्रों में आगे था।
पाकिस्तान आए दिन भारत में कुछ ना कुछ भड़काने वाली गतिविधियां संचालित किया करता था।
इसके पीछे अमेरिका का पाकिस्तान को बेलगाम सपोर्ट था।
पाकिस्तान जो आज बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भी कुछ ना कर सका और पाकिस्तान ने हमारे बहादुर पायलट अभिनंदन को डर कर छोड़ दिया की कहीं भारत ने हमला कर दिया तो वो बर्बाद हो जाएगा।
पाकिस्तान ने एक समय गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के एयरक्राफ्ट को पाकिस्तानी एयर फोर्स के द्वारा उड़ा दिया था और मुख्यमंत्री बलिदान हो गए थे।
आईए समझते हैं क्या था पूरा घटनाक्रम
कैसे हुआ था मुख्यमंत्री पर हमला
19 सितंबर 1965 को गुजरात के मुख्यमंत्री बलवंत राय मेहता द्वारिका से कच्छ की तरफ जा रहे थे।
उसी समय पाकिस्तानी एयर फोर्स का एक लड़ाकू विमान मुख्यमंत्री के एयरक्राफ्ट की तरफ बढ़ता है।
लड़ाकू विमान की मंशा समझ कर एयरक्राफ्ट का पायलट लड़ाकू विमान की तरफ एक मर्सी सिग्नल भेजता है की यह कोई हमला करने वाला एयरक्राफ्ट नहीं है।
लेकिन पाकिस्तानी एयर फोर्स के उस लड़ाकू विमान ने सारे सिग्नलों को नजरअंदाज करके उसपर दो मिसाईल दाग दीं और पल भर में गुजरात के मुख्यमंत्री को ले कर जा रहा वो एयरक्राफ्ट जमीन में आ गिरा।
इस हमले में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री बलवंत राय मेहता, उनकी पत्नी, तीन सहयोगी, एक पत्रकार और दोनों विमान चालक की मृत्यू हो गई थी।
पाकिस्तानी लड़ाकू विमान का पायलट केस हुसैन था और उसे ये मालूम था की ये एक सिविलियन एयरक्राफ्ट है और उसकी सूचना उसने पाकिस्तानी ग्राउंड कंट्रोल को भी दी थी लेकिन पाकिस्तानी ग्राउंड कंट्रोल ने उसे ऑर्डर दिया की इसे उड़ा दो और उसने इसीलिए हमला कर दिया।
बलवंत राय मेहता के विमान को जहांगीर एम इंजीनियर उड़ा रहे थे।
उस वक्त भारत पाकिस्तान युद्ध का अंतिम और निर्णायक क्षण भी चल रहा था।
इस घटना के कुछ दिनों बाद ही भारत पाकिस्तान का युद्ध पाकिस्तान की हार पर समाप्त हो गया था और बाहरी दबाव के चलते लाल बहादुर शास्त्री जी को ताशकंद समझौता करना पड़ा था।
इस घटना के 45 साल बीत जाने के बाद केस हुसैन ने बलवंत राय मेहता की बेटी को पत्र लिखकर माफी भी मांगी थी की वह युद्ध का समय था और वह अपने सीनियर के द्वारा दिए गए आदेशों का पालन कर रहे थे।
बलवंत राय मेहता ने कृषि सुधारों में महत्वपूर्ण कार्य किए थे इसीलिए उनको “पंचायती राज का वास्तुकार” भी कहा जाता है।
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