खाटू श्याम का इतिहास महाभारत के काल का है। खाटू श्याम जी को श्री कृष्ण का कलयुगी अवतार माना जाता है।
खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है। महाभारत काल में खाटू श्याम जी को बर्बरीक के नाम से जाना जाता था।
श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक के बलिदान से प्रसन्न होकर उन्हें कलयुग में श्याम नाम से पूजे जाने का आशीर्वाद दिया था।
खाटू श्याम का मंदिर हजारों साल पुराना है और वर्तमान का मंदिर 1720 में पुनर्निर्मित किया गया था।
खाटू श्याम के बारे में मान्यता है की अगर आपने सच्चे मन से बिना किसी लोभ के कोई ईच्छा मांगी है तो वह जरुर पूरी होती है।
प्रतिवर्ष देश विदेश से करोड़ों भक्त खाटू श्याम जी के दर्शन करने आते हैं।
आईए जानते हैं खाटू श्याम जी का इतिहास और इसके पीछे की पूरी कहानी
खाटू श्याम का इतिहास
बर्बरीक जिन्हें हम खाटू श्याम जी के नाम से भी जानते हैं भीम के पौत्र यानी की घटोत्कच के बेटे थे।
बर्बरीक को बचपन में उनकी मां अहिलावती ने सिखाया था की हमेशा कमजोर का साथ देना चाहिए।
बर्बरीक को भगवान शिव द्वारा एक अनोखा वरदान प्राप्त था। भगवान शिव ने बर्बरीक को तीन बाण वरदान में दिए थे।
इन वाणों की शक्ति ये थी की पहला वाण अपने लक्ष्य को चिन्हित कर लेता था और दूसरा वाण इन लक्ष्यों को भेद कर वापस लौट आता था।
इस वरदान की वजह से बर्बरीक अजेय था। बर्बरीक को जब महाभारत के यूद्ध की जानकारी हुई तो वह भी इस युद्ध में भाग लेने निकल पड़ा।
श्री कृष्ण को जब ये समाचार प्राप्त हुआ की बर्बरीक भी महाभारत के युद्ध में भाग लेगा तो वह चिंतित हो उठे।
क्योंकि श्री कृष्ण जी को पता था की बर्बरीक कुछ ही क्षणों में कौरव और पांडव दोनों का नाश कर देगा।
इसका कारण यह था की बर्बरीक ने शपथ ली थी की वह सिर्फ कमजोर की तरफ से ही युद्ध करेगा।
बर्बरीक जिस भी पक्ष से लड़ता वह पक्ष अजेय हो जाता और दुसरा पक्ष कमजोर पड़ जाता और फिर बर्बरीक कमजोर पक्ष की तरफ से लड़ता और दूसरे पक्ष को खत्म कर देता।
इस तरह बर्बरीक कौरव और पांडव दोनों की सेना को खत्म कर देता।
श्री कृष्ण जी बर्बरीक को रोकने के लिए एक ब्राह्मण का वेश बना कर उसके पास पहुंच गए।
वहां उन्होंने बर्बरीक से कहा की सिर्फ तीन वाणों से युद्ध करने जा रहे हो।
यह मूर्खता नहीं तो और क्या है। यह सुनकर बर्बरीक ने ब्राह्मण वेश धारी श्री कृष्ण से कहा की मैं सिर्फ दो वाणों से ही पूरी धरती का नाश कर सकता हूं और तीसरे वाण की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक की बातों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर ऐसा है तो मुझे अभी इसकी दक्षता सिद्ध करके दिखाओ।
बर्बरीक तैयार हो गया और उसने श्री कृष्ण से कहा की वो लक्ष्य बताएं जिसे बेधना है।
श्री कृष्ण ने कहा कि सामने दिख रहे पीपल के पेड़ के सारे पत्तों को बेध कर दिखाए।
बर्बरीक ने अपने धनुष बाण उठा लिए।
बर्बरीक ने एक ही बाण से सारे पीपल के पत्तों को चिन्हित कर लिया और इसी बीच श्री कृष्ण ने पीपल से एक पत्ता तोड़कर अपने पैर के नीचे छुपा लिया।
बर्बरीक ने दूसरे बाण से सारे पत्तों में छेद कर दिया।
सब पत्तों में छेद करने के बाद वाण वापस ना जाकर श्री कृष्ण जी के पैरों के आसपास घूमने लगा।
यह देखकर बर्बरीक आश्चर्य में पड़ गया और उसने कहा कि आपने अपने पैरों के नीचे पत्ता छिपाया है इसलिए यह वाण आपके पैर के इर्द गिर्द चक्कर लगा रहा है।
श्री कृष्ण ने जैसे ही पैर हटाया बाण पत्ते में छेद करके वापस आ गया।
यह देखकर ब्राह्मण वेश धारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा की ब्राह्मण को दान नहीं दोगे।
बर्बरीक ने कहा कि बताएं आपको दान में क्या चाहिए। श्री कृष्ण ने कहा की बर्बरीक मुझे दान ने तुम्हारा सिर चाहिए।
यह सुनकर बर्बरीक अचंभित हो उठा और उसने कहा की मैं कभी अपने वचन से पीछे नहीं हटता हूं।
बस मुझे यह बता दीजिए की आप हैं कौन और आपका प्रयोजन क्या है, क्योंकि कोई भी साधारण ब्राह्मण दान में सिर नहीं मांगता।
यह सुनकर श्री कृष्ण अपने असली रूप में सामने आ गए। सामने श्री कृष्ण को देखकर बर्बरीक उनके चरणों में गिर पड़ा।
श्री कृष्ण जी ने कहा की मैं तुम्हारे इस बलिदान से बहुत प्रसन्न हूं।
कलयुग में तुम श्याम यानी की मेरे नाम से जाने और पूजे जाओगे और लोगों का उद्धार करोगे।
तुम कलयुग में लोगों के कल्याण का एक माध्यम बनोगे।
श्री कृष्ण ने अपना पूरा प्रयोजन बर्बरीक को समझाया और बताया की यह करना क्यों जरूरी था अन्यथा तुम्हारे हाथों से पाप हो जाता और तुम दोनों पक्षों यानी की पाप के साथ साथ पुण्य का भी नाश कर देते।
बर्बरीक ने अपना शीश काट कर देने से पहले श्री कृष्ण जी से एक ईच्छा जताई।
बर्बरीक ने कहा की उसे महाभारत का युद्ध देखना है।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक की इच्छा अनुसार उसका शीश युद्ध के मैदान के पास अमृत वटी की सहायता से एक पहाड़ी पर रख दिया जहां से वह युद्ध देख सके।
बर्बरीक को श्री राम के बाद सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर भी कहा गया है। बर्बरीक ने अपना शीश फाल्गुन मास की द्वादशी को दान दिया था।
बर्बरीक को शीश दानी भी कहते हैं। महाभारत युद्ध के बाद बर्बरीक का शीश रूपवती नदी में प्रवाहित कर दिया गया।
यह शीश बहता हुआ खाटू श्याम गांव पहुंच गया। रूपवती नदी वर्षों बाद सूख गई और बर्बरीक का सिर वहीं दब गया।
खाटू श्याम मंदिर का इतिहास
राजस्थान के सीकर के पास खाटू श्याम जगह के शासक रूप सिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कवर शासन करते थे।
रात में नर्मदा कंवर को सपने में दिखाई दिया की एक कुंड में खाटू श्याम का शीश पड़ा हुआ है।
सुबह राजा ने श्याम कुंड नामक जगह पर खुदाई करवाई जहां पर बर्बरीक का शीश मिला।
इस शीश को लेकर विक्रम संवत 1084 में खाटू श्याम मंदिर की स्थापना करी गई।
मुगल अक्रांता औरंगजेब ने लाखों सैनिकों के साथ मिलकर इस मंदिर को ध्वस्त करवा दिया था।
इस मंदिर को ध्वस्त करवाने के कुछ ही दिनों बाद ही औरंगजेब की तबियत बिगड़ गयी और औरंगजेब की मृत्यु हो गई।
बाद में सन् 1720 में अभय सिंह द्वारा इस मंदिर की पुनः स्थापना करी गई।
खाटू श्याम जाने का मार्ग
खाटू श्याम मंदिर जाने के लिए आपको सबसे पहले झुंझनू जाना पड़ेगा।
फिर वहां से सीधे सीकर के लिए बस मिल जाती है। आजकल सीकर के लिए सीधे ट्रेन और बस की सुविधा उपलब्ध है।