प्रकाश की गति (Light Ki Speed) किससे मापी जाती है

प्रकाश की गति (Light Ki Speed) का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में विचार आता है ब्रह्मांड की सबसे तेज स्पीड वाली चीज़।

एक ऐसी चीज जिसकी स्पीड के बारे में सोचना भी काल्पनिक लगता हो।

लेकिन ज्यादातर विज्ञान के स्टूडेंट जानते हैं की प्रकाश की भी एक सीमा होती है और प्रकाश इस सीमा से अधिक नहीं जा सकता।

जी हां प्रकाश की स्पीड होती है लगभग 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड इसका मतलब ये हुआ की प्रकाश एक सेकेंड में 3 लाख किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है।

और इससे भी आश्चर्य की बात ये है की वैज्ञानिकों ने प्रकाश की स्पीड को नापा कैसे।

एक ऐसी चीज जिसके बारे में सोचने मात्र से वो लाखों किलोमीटर की दूरी तय कर ले उसे नापा कैसे गया।

प्रकाश की गति (Light Ki Speed) कैसे मापा जाता है?

तो आज हम इसी बारे में बात करेंगे की प्रकाश की स्पीड को सबसे पहले कैसे और किसने नापा और साथ ही आज कल प्रकाश की स्पीड को कैसे नापते है।

पुराने समय में लोगों का विश्वास था की प्रकाश की गति अनंत होती है और उसे मापना असंभव है लेकिन हर युग में ऐसे लोग मौजूद रहें हैं जिनके लिए असंभव शब्द नही होता।

बहुत से ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने प्रकाश की गति की सीमा मापने की कोशिश की और सबसे पहले कोशिश की महान खगोलविद गैलिलयो ने।

गैलिलयो ने प्रकाश की गति नापने के लिए एक अनूठा प्रयोग किया।

उन्होंने दो ऊंची पहाड़ियों पर दो आदमियों को लालटेन लेकर खड़ा कर दिया।

उन दोनो की लालटेन पर कपड़ा पड़ा हुआ था।

उन्होंने दोनो व्यक्ति को निर्देश दिया की उनको कपड़ा इस तरह हटाना है की जब पहला व्यक्ति कपड़ा हटाए तो दुसरे व्यक्ति को रोशनी दिखाए दे और जब दूसरा व्यक्ति कपड़ा हटाए तो पहले व्यक्ति को रोशनी दिखाई दे।

उनका तात्पर्य यह था की जब पहला व्यक्ति कपड़ा हटाए तो उसकी रोशनी को दुसरे व्यक्ति तक पहुंचने में लगा समय माप सकें।

लेकिन ये प्रयोग असफल रहा क्यूंकि दोनों व्यक्तिओं के बीच की दूरी मात्र कुछ किलोमीटर ही थी।

इसके बाद एक अन्य वैज्ञानिक ओल रोमर ने प्रकाश की गति को नापने का प्रयोग किया और वो काफी हद तक सफल भी रहा।

सन् 1676 में खगोल वैज्ञानिक ओल रोमर ज्यूपिटर ग्रह के चन्द्रमा आईओ का अध्ययन कर रहे थे।

आईओ को ज्यूपिटर की परिक्रमा पूरी करने में 1.76 दिन का समय लगता है।

यह समय हमेशा समान रहता है लेकिन जब उन्होंने उस चन्द्रमा के ग्रहण का अध्ययन किया तो पता चला की आईओ साल में हमेशा उसी समय पर ज्यूपिटर के सामने से गुजरता हुआ नहीं दिखाई देता।

इसका मतलब ये हुआ की ग्रहण का समय निश्चित नहीं होता, इस बात ने सभी को हैरान कर दिया पर कोई ये नही जान पाया की ऐसा क्यों होता है।

सबके दिमाग में यही चल रहा था की ऐसा क्यों होता है और इसका प्रकाश की गति से क्या सम्बन्ध है।

वैसे इस घटना का सीधा सा सम्बन्ध प्रकाश की गति से है।

किसी भी चीज को हम तभी देख पाते हैं जब उस चीज का प्रकाश हमारी आंखों में पड़ता है।

जब ज्यूपिटर और उसके चन्द्रमा पृथ्वी से दूर होते हैं तो दो ग्रहण के बीच का समय बड़ जाता है और जब वो पृथ्वी के पास होते हैं तो समय कम हो जाता है।

उन्होंने आईओ के दिखाई देने के समय के अंतर और ज्यूपिटर तथा पृथ्वी के बीच की डिस्टेंस में आने वाले अंतर से प्रकाश की गति की सीमा मापी और उन्होनें प्रकश की गति दी 214000 किलोमीटर प्रति सेकंड।

लेकिन प्रकाश की असली गति तो 299792 किलोमीटर प्रति सेकंड है।

तो ये इतना अन्तर कहां से आया?

वास्तव में उस वक्त वैज्ञानिकों को सौरमंडल की दूरियों का सटीक ज्ञान नहीं था इस कारण उनकी गति सही नही निकली लेकिन फिर भी उनकी इस शोध ने लोगों का प्रकाश की गति को लेकर मत बदल दिया।

और लोग ये मानने लगे की प्रकाश की एक निश्चित गति होती है।

सन् 1983 में वैज्ञनिक EVAN SUN ने प्रकाश की गति की सटीक जानकारी दी 299792.4574 और इसके बाद सन् 1983 में प्रकाश की गति 299792.458 बताई गई।

आजकल प्रकाश के वेग को नापने की बहुत सी इलेक्ट्रॉनिक विधियां हैं जिनसे हम प्रकाश का सटीक विश्लेषण कर सकते हैं।

लेकिन उनमे से सबसे आसान और सरल तरीका  है वो है Fizeau’s rotating wheel मेथड एक दांते दार व्हील और एक दर्पण होता है जिसे व्हील से कुछ दूरी पर रखा जाता है मान लेते है वो दूरी L है, अब प्रकाश स्रोत से एक प्रकाश की किरण डालते है जो व्हील के दो दांतो के बीच गैप से जाती है और दर्पण से टकरा कर वापस प्रकाश स्रोत की तरफ आजाती है जिसे आँख से देखा जा सकता है, अब व्हील की घूमने की गति बढ़ाते है और बढ़ाते बढ़ाते इतनी कर देते है कि प्रकाश स्रोत से प्रकाश व्हील के दांतों के बीच गैप से दर्पण की तरफ तो जाए पर जब तक वापस उसी गैप की तरफ आये उससे पहले व्हील का अगला दांता उस गैप के सामने आजाये व्हील की इस स्पीड पर दर्पण से टकरा कर वापस आने वाला प्रकाश दिखना बंद हो जायेगा मान ली जिए ये स्पीड है N revolutions per second और व्हील पर दाँतो की संख्या N है तब दांते को गैप का स्थान लेने में लगा समय = 1/2nN सेकण्ड प्रकाश द्वारा व्हील से दर्पण तक और दर्पण से उस दांते ( जिस दांते ने उस गैप का स्थान लिया) तक आने में तय की गयी दूरी=2L मीटर प्रकाश की चाल = दूरी/ समय = 4LnN मीटर/सेकण्ड 1850 में जब ये प्रयोग किया गया था तब जो मान लिये गए थे वो कुछ इस प्रकार थे – 2L = 17.26 km, N= 720, n= 12.6 rps, आप ये मान ऊपर दिए गए सूत्र में रखिए और देखिये आपको प्रकाश की चाल मिल जायेगी।

एक समानांतर किरण देने के लिए प्रकाश को मोनोक्रोमैटिक होना चाहिए और अवांछित प्रतिबिंबों को रोकने के लिए पहिया पर दांतों को काला करना चाहिए इसके अलावा हमारे पूर्वजों ने भी प्रकाश की गणना बहुत पहले कर दी थी जैसे आचार्य सायन ने चौदवी शताब्दी में ही प्रकाश के वेग का सटीक उल्लेख किया है।

उन्होंने सयानाचार्य में लिखा है

योजनानां सहस्रे द्वे द्वे शते द्वे च योजने।

एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तु ते ॥

अर्थात्

आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है।

इसमें निमेष और योजन को सेकेण्ड तथा किमी में बदलने पर प्रकाश का वेग 299,938.5 km/s आता है जो वर्तमान में मापे गये प्रकाश के वेग (299792458मी/सेकेण्ड) के बहुत समीप है।

इसके अलावा हनुमान चालीसा में भी धरती से सूर्य की दूरी का सटीक वर्णन है,

हनुमान चालीसा में लिखा है

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।

जुग( युग) = 12000 वर्ष

एक सहस्त्र = 1000

एक जोजन (योजन) = 8 मील

भानु = सूर्य

युग x सहस्त्र x योजन = पर भानु

यानि सूर्य की दूरी 12000 x 1000 x 8 मील = 96000000 मील एक मील = 1.6 किमी 96000000 x 1.6 = 153600000 किमी इसी के आधार बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है।

यह साबित करता है कि सनातन धर्म में कही गई बातें विज्ञान पर आधारित हैं।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *