शक्कर जिसे हम आम बोल चाल की भाषा में चीनी भी कहते हैं का अविष्कार भारत में हजारों साल पहले हुआ था।
तब यह भूरे रंग की हुआ करती थी और इसका उल्लेख “चरक संहिता” “अर्थशास्त्र” जैसी किताबों में भी है।
शक्कर हजारों साल से भारतीय खान-पान का एक हिस्सा रही है और भारत के अलावा पूरी दुनियां में शक्कर की जगह अधिकांश शहद ही प्रयोग में लाया जाता था।
पूरे विश्व में शक्कर का उपयोग 13 शताब्दी के अंत में शुरु हुआ।
लेकिन इसका नाम चीनी कैसे पड़ा आईए जानते है इसका रोचक इतिहास
शक्कर का नाम चीनी कैसे पड़ा
शक्कर को हम संस्कृत में शर्करा कहते हैं और बाद में यह गुप्त काल में भूरे और बड़े दाने के रूप में सामने आई।
भारत में शक्कर की खोज 2500 वर्ष पूर्व मानी जाती है।
जबकि कई जगह शर्करा का उल्लेख 4,000 वर्ष पूर्व भी भारतीय किताबों में लिखा है।
इतिहास में कई जगह न्यू गिनी और भारत में समानांतर शर्करा के उपयोग का जिक्र है।
भारत में बनाई जाने वाली शर्करा व्यापार के जरिए भारत से बाहर होते हुए मध्य एशिया और फिर मिश्र पहुंची।
जहां मिश्र के कारीगरों ने इसके रूप और आकार में परिवर्तन किया जिसके कारण इसके इस स्वरूप का नाम मिश्री पड़ा।
शक्कर को यूरोप पहुंचते पहुंचते 11 शताब्दी तक का समय लग गया।
सन् 1505 में पुर्तगालियों ने कैरेबियन द्वीप समूह में सबसे पहली शक्कर उत्पादन की कॉलोनी बनाई।
पुर्तगालियों ने शक्कर के व्यापार के लिए अफ्रीकन दासों को पकड़कर कर कैरेबियन द्वीप समूह पर बसा दिया और वहीं से वो जबरन उनसे शक्कर की खेती करवाते थे।
वहीं पर पुर्तगालियों ने शुगर कॉलोनी भी लगाई ताकी वहां से पूरे विश्व में शक्कर का व्यापार कर सकें।
जहां से दुनियां भर में इसका व्यापार होने लगा। 16 शताब्दी में यह चीन से होती हुई भारत वापस आई।
जब चीन से भारत में इसका व्यापार होने लगा तो इसका स्वरूप बदल कर सफेद और दानेदार हो गया था।
चीन से आने के कारण ही इसे चीनी कहा जाने लगा।
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