कन्यादान में बेटी अपने गोत्र को छोड़कर अपने पति के गोत्र में जाती है इसे ही हम कन्यादान कहते हैं। लेकिन कुछ अल्पज्ञानी और पढ़े लिखे अनपढ़ लोग इसे कन्या का दान से जोड़कर देखते हैं। हमारे ग्रंथों में कहीं भी कन्यादान का मतलब यह नहीं लिखा है की पिता अपने पुत्री का दान कर रहा है, इसका मतलब ये है की बेटी का अब तक का गोत्र पिता का था और अब शादी के बाद वह अपने पति के गोत्र में शामिल हो जायेगी।