क्या हुआ था जब रूसी वैज्ञानिकों ने धरती के ऊपर दूसरा सूर्य बनाने की कोशिश की, क्या हुआ था परिणाम

operation Znamya

 

वैज्ञानिक हमारे जीवन को सुलभ और सरल बनाने के लिए नित नए प्रयोग किया करते हैं। कुछ प्रयोग सफल होते हैं और कुछ असफल। 
 
सफल प्रयोग हमारे जीवन को एक नई दिशा दिखाते हैं और असफल प्रयोग हमें तकनीकी प्रयासों में सुधार करने की सीख दे जाते हैं। 
 
आज हम एक ऐसे ही प्रयोग के बारे में बात करेंगे और यह प्रयोग सफल रहा या असफल इसकी विवेचना आप करेंगे। 
 
इस प्रयोग में रूसी वैज्ञानिकों ने धरती के ऊपर एक नए सूर्य बनाने की कोशिश की थी। आईए समझते हैं की क्या था ये प्रयोग
 

धरती के ऊपर लगा दिया था एक दर्पण

सन् 1993 में रूसी वैज्ञानिकों ने धरती के ऊपर एक बड़ा सा दर्पण लगा दिया था जो सूर्य से आने वाली रोशनी को धरती पर परावर्तित करके भेज सके।
 
इस प्रोजेक्ट को नाम दिया गया था “ZNAMYA” जिसका मतलब होता है बैनर। 
 
यह वह दौर था जब रूस किसानों और मजदूरों से अधिक से अधिक काम करवाना चाहता था। लेकिन रात के चक्कर में वो एक सीमित समय में ही काम कर पाते थे। 
 
उस वक्त एक इंजीनियर व्लादिमीर सिरोम्यातिकोव ने काम के घण्टे बढ़ाने के लिए एक आइडिया सोचा। 
 
उसने सोचा की अगर धरती के ऊपर एक पैनल लगा दिया जाए जो की सूर्य के अस्त होने के बाद भी 1 या 2 घण्टे तक धरती पर रोशनी फेक सके तो किसानों और मजदूरों से हम अधिक काम करवा सकेंगे। 
 
उसने यह आईडिया उस वक्त के सोवियत (आज का रुस) के लीडर्स को बताया।
 
उस वक्त के सोवियत लीडर्स के ऊपर अधिक से अधिक काम करवाने की सनक थी ताकी उत्पादन अधिक बढ़ा सकें। 
 
व्लादिमीर अपने काम में लग गए और सन् 1993 में यह प्रोजेक्ट स्पेस में लॉन्च किया गया। इस प्रॉजेक्ट को मीर स्पेस स्टेशन से लॉन्च किया गया। 
 
मीर स्पेस स्टेशन सोवियत संघ का स्पेस स्टेशन था जो 1986 से 2001 तक की अवधि में काम कर रहा था।
 
व्लादिमीर ने मीर स्पेस स्टेशन से ZNAMYA को लॉन्च किया। यह एक 20 मीटर का Mylar से बनी हुई एक छतरी टाईप की थी जो अपने आप फैल कर खुल सकती थी और बंद हो सकती थी। 
 
इसको मीर स्पेस स्टेशन से ही संचालित किया जा रहा था। ZNAMYA को 4 फरवरी 1993 को आकाश में धरती से 350 किलोमीटर की ऊंचाई पर लॉन्च किया गया।
 
जब इसने सूर्य की रोशनी को धरती पर परावर्तित किया तो यह करीब 5 किलोमीटर के दायरे में रोशनी कर सकी। 
 
इसका प्रकाश इतना अधिक नहीं था जितनी कल्पना की गई थी लेकिन इसका प्रकाश एक पूर्णिमा के चांद के बराबर था। 
 
दुर्भाग्यवश उस दिन बादलों की वजह से बहुत अधिक लोग उस रोशनी को नहीं देख पाए। 
 
हालांकि यह प्रयोग सिर्फ कुछ घंटों तक ही हो पाया क्योंकि ZNAMYA अपनी कक्षा से भटक कर पूरी तरह से जल गया था। 

इसके बाद सोवियत संघ के वैज्ञानिकों ने ZNAMYA 2 को लॉन्च किया। यह 25 मीटर का था और यह 7 किलोमीटर की रेंज में प्रकाश कर सकता था। 
 
लेकिन यह ZNAMYA 2 मीर स्पेस स्टेशन में ही फंस कर बुरी तरह फट गया। इसके बाद सोवियत संघ ने कई सारे रिफ्लेक्टर को लांच करने का प्लान बनाया जो की एक साथ धरती पर प्रकाश करेंगे। 
 
लेकिन इस प्रोजेक्ट का हर जगह विरोध होना शुरू हो गया। खगोल वैज्ञानिक कहने लगे की इसकी वजह से धरती पर प्रकाश का प्रदूषण पैदा होगा। 
 
हर इंसान और जीव जंतु की अपनी एक बायोलॉजिकल क्लॉक होती है जो इस रोशनी के कारण प्रभावित होगी। 
 
इंसानों और जीव जंतुओं में अवसाद आ सकता है। कई पर्यावरणविद ने यह कहकर विरोध किया की आकाश पर सबका अधिकार है और हम इसे नहीं छीन सकते। 
 
इसके अलावा ह्यूमन राइट्स वालों ने भी यह कहकर विरोध किया की हम इंसानों से इतना अधिक काम नहीं करवा सकते। 
 
तमाम विरोध के चलते यह प्रोजेक्ट बंद कर दिया गया था। 
 
लेकिन इस प्रोजेक्ट ने एक नई आशा दी थी की हम धरती या किसी अन्य ग्रह को आर्टिफिशियल तरीके से भी दिन की रोशनी दे सकते हैं।
 
 
 
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