ईश्वर ने हमारा मानव शरीर इस धरती पर रहने लायक बनाया है। हमारे शरीर के सारे अंग इस पृथ्वी के अनुसार काम करते हैं।
लेकिन जब हम अपना ग्रह पृथ्वी छोड़कर अंतरिक्ष में जाते हैं तो हमारे शरीर को एक नई जगह के अनुसार काम करना पड़ता है।
जिसके परिणामस्वरूप हमको बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आज हम उन्हीं सब समस्याओं के बारे में जानेंगे जो हमारे शरीर को पृथ्वी के बाहर जाने पर झेलने पड़ते हैं।
आंखें
अंतरिक्ष में जाने पर ज्यादातर एस्ट्रोनॉट की आंखो की रोशनी में कमी हो जाती है। वैज्ञनिक इसके दो कारण मानते है।
पहला कारण यह होता है की हमारे दिमाग में खून का दवाब बढ़ जाता है जिसके कारण विजन कम होने लगता है। दूसरा कारण वैज्ञानिक कॉस्मिक किरण को मानते हैं जो हमारे विजन को प्रभावित करती है।
धरती पर ये कॉस्मिक किरण वायुमंडल द्वारा एब्जॉर्ब कर ली जाती है जिसके कारण यह हमारी आंखों को नुकसान नहीं पहुंचा पाती है। जबकि आकाश में इस तरह की कोई परत नहीं होती।
हृदय
अंतरिक्ष में हमारे हार्ट को उतनी मेहनत से काम नहीं करना पड़ता जितना उसे पृथ्वी पर करना पड़ता है इसलिए हार्ट सिकुड़ जाता है।
जिसके फलस्वरूप जब एस्ट्रोनॉट वापस धरती पर आते हैं तो उनको हृदय संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ता है। यही कारण है की स्पेस स्टेशन में एस्ट्रोनॉट को प्रतिदिन कई घंटे ट्रेडमिल पर बिताने पड़ते हैं।
खून
पृथ्वी पर ग्रेविटी के कारण हमारा खून पैरों की तरफ जाने की प्रवृति रखता है लेकिन स्पेस में ग्रेविटी ना होने के कारण हमारे शरीर का रक्त हमारे दिमाग की तरफ दौड़ने लगता है जिसके कारण एस्ट्रोनॉट के चेहरे सूज जाते हैं।
हड्डियां और मांशपेशियां
अंतरिक्ष में हमारे शरीर की मांसपेशी और हड्डियों को ज्यादा काम नहीं करना पड़ता और साथ में ग्रेविटी ना होने की वजह से हड्डियां और मांशपेशियां सिकुड़ने लगती हैं।
हमारी हड्डियां बहुत ही कमजोर हो जाती हैं जिसकी वजह से इनके टूटने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। अगर अंतरिक्ष यात्री लगातार व्यायाम ना करें तो सिर्फ दस दिन के अंदर ही हमारी मांशपेशियां अपने वजन का 20% भार खो देंगी।
पृथ्वी में ग्रेविटी के कारण हमारी हड्डियों में लगातार तनाव पड़ा करता है लेकिन स्पेस में ग्रेविटी ना होने के कारण यह तनाव खत्म हो जाता है जिसका दुष्परिणाम ये होता है की हमारी हड्डियां बहुत कमजोर हो जाती हैं।
स्पेस में तीन महीने रहने पर हमारी हड्डियों की डेंसिटी इतनी कम हो जाती है की इसको कवर करने के लिए पृथ्वी पर दो से तीन साल लग जाते हैं। इसीलिए अपना ज्यादातर समय एस्ट्रोनॉट व्यायाम करने में बिताते हैं।
रीढ़ की हड्डी
पृथ्वी पर गुरत्वाकर्षण के कारण हमारी रीढ़ की हड्डी पर दवाब बना रहता है जिसके कारण वह एक टोन में रहती हैं।
लेकिन अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण ना होने की वजह से हमारी स्पाइन पर कोई दवाब नहीं पड़ता जिसके कारण वह फैलने लगती है। यही कारण है की अंतरिक्ष यात्रियों की लंबाई दो से तीन इंच तक बढ़ जाती है।
दिमाग
सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव हमारे दिमाग पर पड़ता है। तनाव, अकेलापन, नींद ना आना, कॉस्मिक किरण का प्रभाव, शरीर का संतुलन, स्वाद और गंध की क्षमता में कमी आदि दिमाग को प्रभावित करते हैं।
इन सब के अलावा उल्टी, चक्कर और सर दर्द बहुत ही कॉमन समस्या है अंतरिक्ष यात्रियों के लिए। कॉस्मिक विकिरण अंतरिक्ष यात्रियों के डीएनए तक में बदलाव कर देता है।
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