इंदिरा गांधी को आयरन लेडी कहा जाता है और इसके पीछे कई ठोस वजह भी हैं। इन्दिरा गांधी जब 1967 में देश की प्रधानमंत्री बनी तो कॉन्ग्रेस में लोग उन्हें “गूंगी गुड़िया” कहते थे।
लेकिन इन्दिरा गांधी ने अपने दमदार निर्णयों से सबके विचार बदल दिए। उन्होंने अपने शासन काल में कुछ ऐसे निर्णय लिए जिसकी वजह से पूरे भारत देश के साथ साथ विपक्ष भी उनको “आयरन लेडी” कहने पर मजबूर हो गया। आईए जानते हैं उनके कुछ ऐसे निर्णय के बारे में
देश को आजादी के बाद से ही एक खुफिया एजेंसी की जरूरत थी ताकि देश की सुरक्षा बनी रहे लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसको एक सिरे से नकार दिया था जिसकी वजह से हमारे देश को काफी समस्याओं का लगातार सामना करना पड़ रहा था।
पंडित जवाहरलाल नेहरु इस मामले में बहुत ही अदूरदर्शी व्यक्ती थे। यहां तक की भारत के साथ ही आजाद हुए पकिस्तान ने भी सन् 1948 में ही अपनी खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) की स्थापना कर ली थी।
लेकिन इंदिरा गांधी ने पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा की गई इस गलती को सुधारते हुए 1968 में रॉ ( रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग, RAW) की स्थापना कर दी।
इसका फायदा भी हमारे देश को मिला जब दिसंबर 1971 को पकिस्तान ने भारत पर हमला किया तो रॉ ने पहले ही सूचना भारतीय वायु सेना को दे दी थी की पकिस्तान इस तारीख को हमला करने वाला है।
यही कारण था की 1971 का युद्ध भारत ने बड़े ही अंतर से जीता था। इंदिरा गांधी ने ये समझ लिया था की अगर पाकिस्तान के हौसले तोड़ने हैं तो उसके दो टुकड़े करने होगें और सन् 1971 का युद्ध एक बहुत ही उचित समय था।
उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराने का साहस दिखाया। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान की आजादी के लिए मुक्ति वाहिनी का गठन और उसके संघर्ष में बहुत ही मदत की।
उस वक्त अमेरिका ने भारत पर बहुत दबाव बनाया लेकीन इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं। उन्होंने पाकिस्तानी सेना के 90,000 सैनिकों को भी बंदी बना लिया था।
उस वक्त अमेरिका और पाकिस्तान का बहुत ही गहरा याराना था और पाकिस्तान की सहायता के लिए अमेरिका ने अपने युद्धपोत भारत के विरुद्ध लड़ने के लिए भेज दिए थे।
इंदिरा गांधी ने समझदारी दिखाते हुए भारत के घनिष्ट मित्र रूस से सहायता मांगी और रूस ने अमेरिकी युद्ध पोत के पीछे अपने बेड़े लगा दिए।
जिसकी वजह से अमेरिका पाकिस्तान की कोई सहायता ना कर पाया। पाकिस्तान के 90,000 सैनिकों का समर्पण द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर अब तक का सबसे बड़ा सैनिक समर्पण माना जाता है। यह एक रिकॉर्ड है।
इंदिरा गांधी और सेना की नीतियों की वजह से ही पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए गए। लेकिन यहीं पर इंदिरा गांधी से एक रणनीतिक भूल हो गई।
उन्होंने शिमला समझौते में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फीकार अली भुट्टो की चालाकियों को ना समझकर उनके सारे सैनिक वापस कर दिए, और तो और 13,000 वर्ग किलोमीटर की जमीन जो भारत के सैनिकों ने कब्जा कर ली थी पाकिस्तान में, वह भी वापस कर दी।
अगर इन्दिरा गांधी ये शर्त रखतीं की POK उन्हें चाहिए तो पाकिस्तान के पास और कोई विकल्प नहीं था और कश्मीर की समस्या तभी खत्म हो गई होती।
परमाणु परीक्षण करना
इंदिरा गांधी ने अमेरिका और पूरे विश्व की धमकी की परवाह ना करते हुए 1974 में परमाणु परीक्षण करवा दिया।
सबसे खास बात यह रही की परमाणु परीक्षण के लिए आवश्यक यूरेनियम को भी चालाकी से अमेरिका से ही मंगवाया गया था। यह परमाणु परीक्षण भारत के लिए बहुत ही जरूरी था।
इन्दिरा गांधी को पता था की अगर आप शक्तिशाली हैं तो कोई भी आपसे युद्ध करने की हिम्मत नहीं करेगा।
इंदिरा गांधी ने बहुत ही चालाकी से अमेरिका खुफिया एजेंसियों की आंख में धूल झोंकते हुए परमाणु परीक्षण करवाया। पूरा विश्व भारत के इस परीक्षण से हतप्रभ रह गया था।
इस परमाणु परिक्षण की कमान वैज्ञानिक राजा रमन्ना के हाथ में थी और उन्होंने 75 वैज्ञानिकों के साथ मिलकर 7 साल के अथक प्रयास के बाद यह परिक्षण किया था।
उन 75 वैज्ञानिकों की टीम के सदस्य डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम भी थे। इस प्रोजेक्ट का नाम स्माइलिंग बुद्धा रखा गया था।
इन्दिरा गांधी ने यह परिक्षण इतनी सीक्रेट तरीके से करवाया था की भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम को भी इसकी खबर परिक्षण होने के बाद पता चली।
सिक्किम को भारत में शामिल करना
शायद आपको पता ना हो लेकिन सिक्किम 1947 से 1974 तक एक स्वतंत्र राष्ट्र था। 6 अप्रैल सन् 1975 में इंदिरा गांधी ने 5,000 सैनिकों को सिक्किम के राजा के सामने उतार दिया।
सिर्फ 30 मिनट्स लगे सिक्किम को भारत में शामिल करवाने के लिए। सिक्किम पर कब्जा करना इसलिए भी आवश्यक था क्योंकि सिक्किम पर चाइना का प्रभाव बढ़ रहा था और आगे चलकर यह भारत के लिए कश्मीर की तरह का सिरदर्द साबित हो सकता था।
सिक्किम पर कब्जा करने की पूरी भूमिका रॉ ने ही तैयार की थी। अब आप समझ सकते हैं की भारत की खुफिया एजेंसी की स्थापना कितनी आवश्यक थी। इंदिरा गांधी ने पंडित जवाहरलाल नेहरु द्वारा की गई गलतियों को सुधारने का प्रयास किया।
ऑपरेशन ब्लू स्टार
यह इन्दिरा गांधी के जीवन का सबसे साहसिक निर्णय माना जा सकता है क्योंकि इस निर्णय के कारण ही उनको अपनी जान गवानी पड़ी थी।
उस वक्त पंजाब में पाकिस्तान समर्थक खालिस्तानी आतंक मचाए हुए थे। पंजाब में आए दिन खालिस्तानी आतंकवादी लोगों की हत्याएं करने लगे थे और एक अलग राष्ट्र खालिस्तान की मांग करनी शुरू कर दी थी।
इन्दिरा गांधी ने खालिस्तानी आतंकवादियों के विरुद्ध सेना उतार दी और जो खालिस्तानी उग्रवादी स्वर्ण मंदिर में घुस गए थे उनके विरूद्ध भी स्वर्ण मंदिर में सेना घुसेड़ दी और खालिस्तानी आतंकवादियों का सफाया कर दिया।
स्वर्ण मंदिर में हुई इस घटना से पूरा सिख समुदाय इन्दिरा गांधी से नाराज हो गया था। इसी नाराजगी के कारण ही 31 अक्टूबर सन् 1984 में उनके घर में ही उनके दो सिख अंगरक्षक ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी।
आपातकाल लागू करना
सन् 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली की सीट पर उस वक्त के तेज तर्रार नेता राजनारायण्य को पराजित किया था।
लेकिन राजनारायण ने इन्दिरा गांधी पर चुनाव में धांधली का आरोप लगा कर हाई कोर्ट पहुंच गए। हाई कोर्ट ने इन्दिरा गांधी पर छह साल तक चुनाव लडने का बैन लगा दिया।
इन्दिरा गांधी हाई कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम गई लेकिन इसी बीच विपक्ष ने विद्रोह शुरू कर दिया और इन्दिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के द्वारा भारतीय संविधान के अन्नुक्षेद 352 के अनुसार आपातकालीन लागू कर दिया।
इन्दिरा गांधी ने अपने सभी विरोधियों को कैद कर दिया और प्रेस पर पाबंदी लगा दी। यह सब इन्दिरा गांधी ने अपनी सत्ता बचाने को किया था।
इसी आपातकाल के दौरान ही संजय गांधी के नेतृत्व में नसबंदी अभियान शुरू कर दिया था। जिसमे इंदिरा गांधी ने कहा था की वो देश की बढ़ती जनसंख्या के विरुद्ध एक पहल कर रहीं हैं।
लोगों को जबरदस्ती पकड़-पकड़ कर नसबंदी कर दी जाती थी। पूरे देश में 19 महीनों के दौरान 83 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कर दी गई थीं।
इन्दिरा गांधी के इस फैसले की बहुत आलोचना हुई थी। आपातकाल को इन्दिरा गांधी के सबसे खराब फैसलों में माना जाता है। लेकिन इसी आपातकाल की सहायता से इन्दिरा गांधी ने अपने विरोधियों में खौफ पैदा कर दिया था।
इन सब के अलावा इंदिरा गांधी ने 1969 में बैंको का राष्ट्रीयकरण किया। इसमें उन्होने देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था।
देश में हुई हरित क्रांति भी इन्दिरा गांधी के शासन काल में ही शुरू हुई। इन्दिरा गांधी ने श्रीलंका में चल रहे तमिल संकट को हल करने के लिए पहल किया था और ब्रिटिश सरकार का श्रीलंका में उपस्थिति का विरोध किया था।
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