पृथ्वीराज चौहान का सच, पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कब और कैसे हुई | How prithviraj chauhan died

भारतीय इतिहास को बहुत बार तोड़ मरोड़ कर लिखा गया है। पृथ्वीराज चौहान की सच्चाई को छुपा दिया गया

 
भारतीय इतिहास की मुख्य मुख्य घटनाओं को समकालीन राजाओं अथवा आक्रमणकारियों द्वारा अपने हिसाब से बदल दिया गया और शायद इसीलिए भारतीय इतिहास में बहुत से विरोधाभास पाए जाते हैं। 

यहां आज हम बात करेंगे भारतीय इतिहास की उस सबसे बड़ी गलती की जिसकी बहुत बड़ी कीमत भारत को चुकानी पड़ी है। 

और वो गलती थी पृथ्वीराज चौहान द्वारा मोहम्मद गौरी को जिंदा छोड़ देना!

 

 
पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले आखिरी हिंदू शासक थे। पृथ्वीराज तृतीय को ही पृथ्वीराज चौहान कहा जाता है। 
 
इन्होंने 1178 से 1192 तक शासन किया और ये चौहान वंश के राजा थे। इनके शासन काल की राजधानी अजयमेरू (अजमेर) थी। 
 
पृथ्वीराज चौहान ने मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद गौरी को कई बार हराया लेकिन बाद में तराइन के युद्ध में 1192 में वो हार गए। 
 
पृथ्वीराज चौहान राजा सोमेश्वर के पुत्र थे और इनका जन्म गुजरात में हुआ था। 
 
जिस समय पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर की मृत्यू हुई (1177) उस वक्त पृथ्वीराज चौहान मात्र 11 वर्ष के थे और अपनी मां के साथ राजगद्दी पर विराजमान हुए। 
 
पृथ्वीराज चौहान का विवाह संयोगिता से हुआ था जो की कन्नौज के राजा जयचंद राठौर की पुत्री थी। 
 
 

पृथ्वीराज चौहान संयोगिता का विवाह Prithviraj chauhan ka vivah kiske sath hua

 
पृथ्वीराज चौहान का विवाह इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण घटना माना जाता है। 
 
एक बार अजमेरू (अजमेर) के महल में जब पृथ्वीराज चौहान टहल रहे थे तभी उनके पास एक दरबारी आया और बोला की महाराज!  
 
कान्यकुब्ज ( कन्नौज ) से आई एक महिला आपसे मिलना चाहती है। 
 
महाराजा के आदेश के बाद उस महिला को लाया गया। 
 
उस महिला ने महाराज से कहा की ” हे राजन! कन्नौज के राजा जयचंद की संयोगिता नाम की एक कन्या है। 
 
उसके समान सुंदरी इस पूरी धरती पर कोई नहीं है।” 
 
उस महिला ने आगे कहा की महाराज ” एक बार जब अपने उधान में घूम रही थी तभी कोई आपके प्रसंशा में गीत गा रहा था जिसमें आपने मलेक्षराज को युद्ध में पराजित किया था। 
 
ये गीत सुनने के बाद ही वो आपसे मिलने को आतुर है, लेकिन उनके पिता उनका विवाह कहीं अन्य कराना चाहते है। 
 
संयोगिता ने ही मुझे आपके पास भेजा है।”
 
राजा जयचंद को जब ये बात पता चली की वो आपसे प्रेम करने लगी है तो वो उनका विवाह कहीं अन्य कराना चाहते हैं। 
 
इतना सुनने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने कहा की “मैं उसकी रक्षा के लिए अवश्य जाऊंगा!” इसके बाद पृथ्वीराज चौहान वेष बदल कर कन्नौज गए। 
 
वो देखना चाहते थे की जो वर्णन उस महिला ने किया था वो सही है की नहीं। वहां जाने के बाद उन्होंने वो सारी चीज़े सही पाई। 
 
जब जयचंद ने अपनी बेटी संयोगिता का सयंवर रचाया तो हर देश के राजा को आमंत्रित किया परंतु पृथ्वीराज चौहान को आमंत्रित नही किया। 
 
उल्टा पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए लोहे से पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति बनवाकर द्वारपाल की जगह खड़ी कर दी। 
 
स्वयंवर के दिन संयोगिता ने उस मूर्ति को ही माला पहनाई। 
 
ठीक उसी वक्त पृथ्वीराज चौहान ने वहां प्रवेश किया और घोड़े पर बिठा कर संयोगिता को उठा लाए।
 
 

पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी का युद्ध


पृथ्वीराज चौहान जब अजमेरु की गद्दी पर बैठे थे तो उस वक्त वो हर तरफ से दुश्मनों से घिरे हुए थे। 
 
सिंध में मुसलमान, गुजरात में चालुक्य, दक्षिण पूर्व में चंदेल और कन्नौज में जयचंद। 
 
पृथ्विराज को अगर बचे रहना था तो उनको हर हाल में युद्ध करना था और दुश्मनों को तबाह करना था। 
 
दूसरी तरफ मोहम्मद गौरी भी हिंदुस्तान में अपना राज्य फैलाने और इस्लाम का प्रचार तलवार की नोक पर करना चाह रहा था। 
 
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच 20 से 22 बार युद्ध हुआ जिसमे से हर बार गौरी को बुरी तरह मात मिली। 
 
लेकिन यहां हम दो प्रमुख युद्धों की बात करेंगे।


तराइन (तरावड़ी) का प्रथम युद्ध 


तराइन का युद्ध एक श्रृंखला है युद्धों की, जिसने पूरे उत्तर भारत को मुस्लिम आक्रमणकारी के लिए खोल दिया था। 

 
मोहम्मद गौरी ने 1186 में गजनवी वंश के अंतिम शासक को हराया और लाहौर पर कब्ज़ा कर लिया। 
 
इसके बाद वो उत्तर भारत में हमले की तैयारी में लग गया। 1191 में उसने चौहान क्षेत्र पर आक्रमण किया और बठिंडा पर कब्जा कर लिया। 
 
इस जीत के बाद वो वापस जाने वाला था की उसे पृथ्वीराज चौहान के बारे में पता चला और उसने पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई का फैसला किया। 

उधर जब पृथ्वीराज चौहान को ये पता चला की बठिंडा पर मोहम्मद गौरी ने कब्जा कर लिया है तो वे दिल्ली के राजा गोविंदराजा के साथ तबर ए हिंद ( बठिंडा) की तरफ प्रस्थान किया। 

 
वहां पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच भयंकर युद्ध हुआ। 
 
तराइन के इस युद्ध में राजपूतों ने मोहम्मद गौरी की सेना के छक्के छुड़ा दिए और बुरी तरह हराया। 
 
गौरी के सैनिक प्राण बचा कर भागने लगे और जो भी सामने आया उसे पृथ्विराज चौहान की सेना ने साफ कर डाला। 
 
मोहम्मद गौरी बुरी तरह घायल हो गया और वो अपने ऊंचे तुर्की घोड़े से गिरने ही वाला था की उसके सैनिक ने देख लिया और उसे बचा लिया। 
 
पृथ्वीराज चौहान की सेना ने मोहम्मद गौरी की सेना को 80 मील पीछे तक खदेड़ा और जो भी सैनिक मिला उसे मार डाला। 
 
तुर्क सेना बुरी तरह हार गई थी। इस युद्ध के बाद पूरे भारत में पृथ्वीराज चौहान की वीरता की कहानियां चर्चित हो गई। 
 
उन्होंने इस युद्ध में तुर्को से लूटी गई राशि जो उस वक्त 7 करोड़ थी वो उन्होंने सैनिकों के बीच बांट दी। 
 
लेकिन यहां पर पृथ्वीराज चौहान से एक भयंकर रणनीतिक भूल हो गई। 
 
उन्होंने मोहमद गौरी को आसानी से जाने दिया अगर उन्होंने उसी वक्त गौरी को मार दिया होता तो शायद आज भारत का इतिहास कुछ दूसरा होता।
 
 

 तराइन (तरावड़ी) का द्वितीय युद्ध


तराइन की हार से मोहम्मद गौरी बौखला गया था। 
 
उसने ये समझ लिया था की पृथ्वीराज चौहान को को सीधे युद्ध में नही हरा पाएगा। 
 
उसने पृथ्वीराज चौहान के दुश्मनों से सम्पर्क करना शुरू किया।
 
मोहम्मद गौरी ने सबसे पहले पृथ्वीराज चौहान के दुश्मन जयचन्द से संपर्क साधा। 
 
जयचंद वैसे भी प्रतिशोध की आग में जल रहा था और उसने तुरंत ही मोहम्मद गौरी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया बिना ये जाने की इसके आगे जो होगा वो बहुत भयावह होगा।
 
जयचंद प्रतिशोध में अंधा हो चुका था। 
 
राजा जयचंद ने गौरी को सैन्य सहायता और अन्य खुफिया जानकारी देने का निश्चय किया। 
 
1192 में मोहम्मद गौरी ने जयचंद और अन्य हिंदु शासकों की मदत से पृथ्वीराज चौहान पर हमला कर दिया। 
 
पृथ्वीराज चौहान इस वक्त युद्ध के लिए तैयार नहीं थे उन्होंने अपने मित्र चंदरबरदाई से अन्य हिंदु शासकों को संदेश भेजा की वो सैन्य सहायता करें लेकिन जयचंद के प्रभाव के कारण सभी राजाओं ने मना कर दिया। 
 
तराइन के क्षेत्र में फिर से मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान आमने सामने थे। 
 
पृथ्वीराज चौहान के पास हाथियों का दल था जबकि मोहम्मद गौरी के पास घुड़सवार दल था। 
 
जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान के बहुत से सैनिक को अपने पास मिला दिया था जिसका परिणाम ये हुआ की पृथ्वीराज चौहान की सेना को बाहरी हमले के साथ साथ अंदर के विद्रोही सैनिकों का भी सामना करना पड़ रहा था। 
 
दोनों तरफ से पृथ्वीराज चौहान की सेना पर वाणों की वर्षा होने लगी। 
 
जिससे सेना में शामिल हाथी घबरा कर अपनी ही सेना को रौंदने लगे। 
 
इसके साथ ही पृथ्वीराज चौहान की सेना युद्ध नियमों का पालन करते हुए रात में युद्ध नहीं करती थी जबकि तुर्कों की सेना रात में भी मारकाट मचाते रहे। 
 
परिणाम स्वरूप पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और उनको बंदी बना लिया गया।  
 
मोहम्मद गौरी ने जयचंद के साथ भी विश्वासघात किया और जयचंद को मारकर कन्नौज पर कब्जा कर लिया।

 

पृथ्वीराज चौहान के बाद संयोगिता का क्या हुआ Prithviraj chauhan wife death history in hindi

 
मोहम्मद गौरी ने बर्बरता की सारी सीमाएं लांघ दी। 
 
युद्ध जीतने के बाद गौरी की सेना ने महल की सारी स्त्रियों का बलात्कार करके मार डाला। 
 
यहां तक कि संयोगिता को नग्न अवस्था में सैनिकों के सामने लाया गया जहां मोइनुद्दीन चिश्ती जिनकी दरगाह इस वक्त अजमेर में है उनके कहने पर रानी संयोगिता को नग्न अवस्था में ही हवस के भूखे सैनिकों के बीच में फेंक दिया गया। 
 
जहां आज भी कई हिंदू मत्था टेकने जाते है बिना कारण जाने। 
 
पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाने के बाद मोहम्मद गौरी ने उनकी आंखे गरम सलाखे से फोड़ दी और उनको अंधा बना दिया। 
 
उनके साथ उनके मित्र चंदरबर दाई को भी बंदी बना लिया गया था।
 
पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाने के बाद मोहम्मद गौरी ने सारा शासन अपने सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को दे दिया और वो पृथ्वीराज चौहान के साथ लौटने लगा। 
 
पृथ्वीराज चौहान के बारे में कहा जाता था की वो शब्द भेदी बाण चला लेते है। 
 
इसको परखने के लिए मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को अंधा करने के बाद उनसे निशाना लगाने को कहा। 
 
उसी वक्त उनके मित्र चंदरब्रदाई ने उनको कहा ” चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान” इतना सुनते ही पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी के उपर बाण चला कर उसे मृत्युलोक भेज दिया। 
 
जैसे ही तुर्क सैनिक पृथ्वीराज चौहान और चंदरबर दाई को मरने आते उन दोनो ने तलवार एक दूसरे के घोप दी और वीरगति को प्राप्त हुए।
 
हालंकि इस युद्ध का भारत के इतिहास पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। भारत में इस्लामी राज्य स्थापित हो गया। 
 
कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में मुगल साम्राज्य की स्थापना की और भारत में दूसरे विदेशी आक्रमणकारियों के लिए मार्ग खुल गया। 
 
इस युद्ध के बाद भारत कभी भी उस समृद्धि को ना पा सका जिसके लिए वो जाना जाता था। 
 
हिंदुओं की आपस की फूट का मुस्लिमों ने जमकर फायदा उठाया।
 
 
 
 

1 Comment

  1. इतिहास के पन्नों को पढकर बहुत ही अच्छा लगा। हमारे अपनों ने ही अपने देश को बरबाद कर दिया था और आज भी कई जयचन्द देश को बरबाद कर रहे हैं ।धन्यवाद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *