भारत में निजीकरण की आवश्यकता क्यों है | क्या निजीकरण सही है

 

nizikaran sahi ya galat


निजीकरण एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर हर सरकारी कर्मचारी चिढ़ जाता है। उसे लगता है की जैसे उसकी कामचोरी उससे छीनी जा रही है। सरकारी कर्मचारी काम ना करने की सैलरी लेते हैं और काम करने के लिए रिश्वत। 

बीएसएनएल नुकसान में है
एयर इंडिया नुकसान में है
बैंक में एनपीए बहुत जायदा है
रेलवे नुकसान में है
सरकारी स्कूल की दुर्दशा तो आप जानते ही है।
 

जो लोग निजीकरण का विरोध कर रहें हैं उनसे मैं कुछ सवाल पूछना चाहूंगा!
क्या वो अपने बच्चों को सरकारी प्राथमिक स्कूल में डालेंगे। नहीं 
क्यों? 
क्योंकि उनको पता है की वहां पढ़ाई नहीं होती या शिक्षा का स्तर वो नही है जो होना चाहिए। टीचर जो की हर महिने की न्यूनतम पचास हजार तक की सैलरी उठाते है और एक या दो घंटे भी ढंग से नहीं पढ़ाते। कई टीचर तो अपनी जगह प्रॉक्सी को भेजकर सिर्फ सैलरी ही लेने जाते हैं। इसलिए प्राथमिक स्कूल की ये दुर्दशा है। 
 
इसके लिए सरकार नहीं ये कामचोर टीचर जिम्मेदार है। अगर ये अनिवार्य कर दिया जाए की प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने वाले सभी टीचर के बच्चे भी वहीं पड़ेंगे तभी उनको सैलरी मिलेगी तो सारे टीचर कामचोरी छोड़कर पढ़ाने लग जायेंगे और हर गरीब के बच्चे को अच्छी एजुकेशन मिलेगी।
 
सरकार शिक्षा के नाम पर अरबों रुपए खर्च करती है, ना जानें कितने सारे अभियान चलाती है, लाखों की संख्या में टीचर भर्ती करती है लेकिन इन सब का कोई तुक नहीं क्युकी सरकारी टीचर सिर्फ क्लास में सोने और गप्प मारने जाता है। क्या आप अपने बच्चे को सरकारी प्राथमिक स्कूल में भेजेंगे नही ना। 
 
तो इतने सारे सरकारी प्राथमिक टीचर भर्ती करने का क्या मतलब। ये सिर्फ सरकारी राजस्व पर बोझ हैं और मुफ्त की सैलरी लेते हैं। आपके आस पास बहुत सारे सरकारी टीचर होंगे और आप खुद जानते होंगे की वो कितना काम करते हैं या जहां इनकी पोस्टिंग है वो वहां कितना जाते है।
 
इससे बेहतर यह होगा की सरकार प्राइवेट स्कूल के लिए समान फीस का रूल बना दे और जो पैसा सरकारी स्कूल के टीचर पर खर्च किया जा रहा है उसका 5 % भी निजी स्कूल की निगरानी में कर दे तो पूरे देश की शिक्षा में एक क्रांति आ जाएगी।
 
आप किसी भी सरकारी बैंक में चले जाएं और वहां बिना झुंझलाए आप एक काम नही करवा सकते। वहां का स्टाफ आपको इस तरह ट्रीट करेगा की जैसे वो बैंक कर्मचारी आपका काम करके आप पर एहसान कर रहा है। जबकि सरकार उसे यही काम करने की सैलरी देती है। 
 
एसबीआई जैसे बैंको में तो हालात और भी खराब है उनका अगर लंच टाइम है तो चाहे भगवान आ जाएं या सामने खड़ा ग्राहक मर ही क्यों न जाए वो अपनी जगह से हिलेंगे नही। वो आपस में बकवास किया करेंगे लेकिन आपका काम नहीं करेंगे। अगर आप जल्दी काम के लिए बोलोगे तो आपसे वो बुरी तरह पेश आएंगे। 
 
उनको इससे फर्क नहीं पड़ता की कोई बुजुर्ग, बीमार या महिला कितनी देर से लाइन में खड़ी है। और अगर कहीं आप लोन लेने के लिए गए है तो बिना रिश्वत दिए आप को लोन मिल ही नहीं सकता चाहे आपके सारे डॉक्यूमेंट्स क्यों न पूरे होै।
 
अब यही काम आप प्राइवेट बैंक में करवाने जाए आपको जमीन आसमान का फर्क दिखाई देगा।
वो आपसे सभ्यता से पेश आएंगे आपकी हर तरह से सहायता करने को तैयार रहते हैऔर लोन के लिए आपका बस डॉक्युमेंट्स पूरे होने चाहिए, वहीं सरकारी बैंक वाले घूस लेकर उनको भी लोन दे देते है जो डिफाल्टर होते हैं और यही रीज़न है बैंक के घाटे में जाने का
 

अब बात करते हैं बीएसएनएल की।

 
आज से २० साल पहले बीएसएनएल के जो टेलीफोन लगते थे घर में उनमें ऐसी दिक्कतें होती थी की पूछिए मत। सबसे पहले आप फॉर्म, भरे फीस जमा करें उसके बाद वहां के सरकारी बाबू की खुशामद करें ताकि वो समय पर आपके घर फोन लगवा दे और तो और फोन लगाने आए तो उनकी सेवा भी करनी पड़ती थी 100 या 200 या जैसे आप फस जाएं। 
 
बात यहीं नहीं खत्म होती है। फिर आए दिन कभी कहीं लाइन टूट जाए तो कंप्लेन करते फिरो और जब वो ठीक करने आएं तो बिना दान दक्षिणा के जाते ही नही थे। 
 
आजकल सब काम कितना आसान हो गया है प्राइवेट टेलीफोन कंपनीज घर बैठे सर्विसेज दे रहीं है वो भी बहुत ही सस्ते दरों पर। क्या आप मोबाइल फोन के बिना आज अपने जीवन की कल्पना कर सकते हैं। ये सब प्राइवेटाइजेशन की ही देन है। 
 
और जो लोग निजीकरण का विरोध कर रहें है वो खुद जियो या एयरटेल के सिम का इस्तेमाल कर रहें हैं। निजीकरण के समर्थक पुराना बेसिक फोन क्यों नहीं उपयोग करते? क्युकी बीएसएनएल में वो कामचोरी और घूस की आदत लगी थी जो प्राइवेट कंपनी ने खतम कर दी।
 

 बिजली विभाग

 
बिजली विभाग ने तो भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिए हैं। गलत बिल, गलत रीडिंग शो करते हैं और जब बिल ठीक करवाने जाओ तो वो ढंग से बात तक नहीं करेगे ऊपर से दान दक्षिणा अलग। 
 
इसी तरह बिजली विभाग के कर्मचारी फैक्टरी में मिलीभगत करके बिल कम दिखाते है और फिर उसको लाइन लॉस में दिखा कर सरकार को चूना लगाते हैं।
 
वहीं अगर रात में आपका कनेक्शन लूज हो जाए या किसी कारणवश लाइन में कोई दिक्कत आ जाय तो ये फोन तक तो उठाते नही और अगर उठा लिया तो ऐसे अशिष्ट व्यवहार करेंगे की आपको लगेगा की आपने ऐसी कौन सी गलती कर दी। रात भर आपको बिना बिजली के ही सोना पड़ेगा। 
 
इसके अलावा ट्रांसफार्मर से तेल की चोरी कर बिजली के तार और सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग तो इनके लिए आम बात है। किसी भी बिजली विभाग में काम करने वाले इंजीनियर का आप रुतबा और घर देख लें आप दंग रह जाएंगे की इतना पैसा इनके पास आया कहां से।
 
जिसने कभी एयर इंडिया में सफर किया है वो ये कष्ट अच्छी तरह जानता है की एयर इंडिया कभी समय पर नहीं होती। हमेशा घंटों विलंब से पहुंचती है। वहीं प्राइवेट एयर कंपनीज मिनटों का हिसाब रखती हैं और इसीलिए वो सक्सेसफुल हैं। 
 
विमान संचालन एक ऐसा बिजनेस है जिसमे हर घंटे का विलंब कंपनी पर लाखों रूपए का घाटा हो जाता है। 
 
तो आप समझ गए होगें की एयर इंडिया जो घंटो विलंब रहती है उसका कितना नुकसान होता होगा और ये नुकसान कौन उठाता है सरकार, और सरकार के पास पैसा कहां से आता है? हमारे टैक्स से। अब आप खुद सोचिए की क्या आप अपना टैक्स इन कामचोर और रिश्वतखोर सरकारी कर्मचारी पर खर्च करना चाहेंगे?
 

थोड़ी बात रेलवे की भी कर लेते हैं। 

 
रेलवे का निजीकरण हो जाने से सबसे पहला फायदा ये होगा की ट्रेन समय पर अपने गंतव्य पर पहुंचने लगेगी। दूसरा ये कि ट्रेन और स्टेशन बहुत ही साफ सुथरे हो जायेंगे। 
 
और तीसरा सबसे बड़ा फायदा ये होगा की यात्रियों को बेहतर सुविधा और सुरक्षा मिल सकेगी। क्युकी ट्रेन में टीटी पैसे लेकर रिजर्वेशन वाले कंपार्टमेंट में किसी को भी भेज देता है और जिन लोगो ने पहले से रिजर्वेशन करवाया होता है उनको असुविधा होती है। 
 
और तो और बिना रिजर्वेशन के घुसे लोग ही ट्रेन में चोरी और लूटपाट जैसी घटनाओं को अंजाम देते है। रिजर्वेशन इंसान अपनी सुविधा के लिए करवाता है और टीटी महोदय थोड़ी सी दान दक्षिणा ले कर सबको बोगी में घुसेड़ देते हैं। 
 
इससे लोगों को ये संदेश जाता है की बिना रिजर्वेशन के ट्रेन में आ जाओ बाकी टीटी साहब संभाल लेंगे। इससे रेलवे को भयंकर राजस्व में नुकसान होता है।

कमोबेश सारे सरकारी विभाग का यही हाल है

 
यहां तो मैंने सिर्फ कुछ उदहारण दिए हैं। किसी भी सरकारी दफ्तर से काम करवाना एक टेड़ी खीर हो जाता है। एक तो वो सभ्यता से पेश नहीं आते, उनके लिए समय की कोई कीमत नहीं( लेकिन जब घर जाना या लंच टाइम होगा तो बहुत समय के पाबंद हो जायेंगे), 
 
बिना रिश्वत के आपका काम नहीं करेंगे और अगर करेंगे तो आपको इतने चक्कर दौड़ा देगें की आप वो काम ही भूल जायेंगे। 
 
सरकार निजीकरण के लिए बोल दे तो तुरंत धरने पर बैठ जायेंगे क्योंकि इनकी कामचोरी और ऊपर की इनकम इनसे छीन जायेगी। 
 
इसी तरह ना जाने कितने सरकारी विभाग है जो भ्रष्टाचार में लिप्त है और आपका जीवन में कई बार इनसे सामना हुआ होगा। अब आप ही यह निर्णय करें की निजीकरण सही है ये गलत।

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