विश्व का सबसे खराब साल जब कई महीनों तक सूरज नहीं निकला और मच गई तबाही

 

the dark age, worst year on earth


साल जब 2020 में कोविड ने पूरे विश्व में दस्तक दी और हर जगह कोहराम मच गया। लाखों लोग काल कवलित हो गए और पूरी की पूरी दुनिया ठप हो गई। लेकिन अगर आपको हम ये बताएं की हमारी मानव सभ्यता इससे भी बुरा दौर देख चुकी है जब 18 महीने तक सूर्य नहीं निकला था और हजारों लोग मारे गएै। आज हम जानेंगे मानव इतिहास का सबसे खराब साल 536 ईस्वी के बारे में।

द डार्क ऐज The Dark Age

536 ईस्वी जिसे हम डार्क ऐज के नाम से जानते हैं यह धरती का सबसे खराब वर्ष माना जाता है। जितना नुकसान उस वर्ष हुआ शायद की कभी धरती का हुआ होगा। 18 महीने तक लगातार सूरज के दर्शन नहीं हुए थे। 
 
पूरे आकाश में सिर्फ धुआं, धुंध और घना कोहरा ही नजर आता था। लोग अपनी छाया तक नहीं देख पा रहे थे। यह सब यूरोप, मिडिल ईस्ट एशिया और एशिया के कुछ हिस्सों में हुआ था। 
 
सूरज की रोशनी धरती तक नहीं पहुंच पा रही थी इस कारण धरती का तापमान अचानक से गिर गया। धरती गर्म ही नही हो पा रही थी। आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं की गर्मियों का अधिकतम तापमान 2 से 2.5 डिग्री ही रहता था। 
 
चीन में गर्मियों में भयंकर बर्फ पड़ी और बिना सूरज की रोशनी के फसलें खराब हो गई। हजारों लोग भूखमरी का शिकार हो गए। लाखों लोग इस कारण मारे गए। 
 
18 महीने बाद धीरे धीरे आसमान साफ होने लगा लेकिन इसके कुछ साल बाद 541 ईसवी में ईस्टर्न रोमन में जस्टिन का प्लेग फैल चुका था। 
 
चूहों द्वारा जस्टिन का प्लेग फैलने का कारण सूरज की रोशनी का ना होना था। जब कई महीनों तक सूर्य नहीं निकला तो लोगों में विटामिन D की कमी होनी शुरू हो गई और इसकी कमी के कारण लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगी और लोग बीमारियों से मरने लगे। 
 
हालात बहुत ज्यादा खराब हो गई हर तरफ सिर्फ मौत ही मौत दिखाई दे रही थी। लोगों को लगने लगा की अब धरती का अंत आ चुका है।
 

क्या था कारण सूर्य ना निकलने का


कई सदियों तक तो लोगों को पता ही नहीं चला की आखिर ऐसा हुआ क्यों था। लोग इसे एक दैविय आपदा मानते रहे। बाद में वैज्ञानिकों के शोध से पता चला की 536 ईसवी में उत्तरी गोलार्ध के एक द्वीप में एक भयानक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था। 
 
इस विस्फोट के कारण सल्फर, बिस्मिथ और अन्य पदार्थ वातावारण में फैल गए थे। इतने पदार्थों और धुएं से वातावरण ढक गया था और जिसके कारण सूर्य की रोशनी धरती पर आनी बंद हो गई थी। 
 
जब कभी वातावरण में इतने सारे पदार्थ फैल जाते हैं तो इसका प्रभाव कम होने में सालों लग जाता है। ज्वालामुखी का धुंवा मकर रेखा के उत्तर के अधिकांश इलाकों में फैला था।
 

भारत पर क्या हुआ था असर


अब आपके मन में भी ये प्रश्न घूम रहा होगा की इतने भयानक जवालमुखी विस्फोट का भारत पर क्या असर हुआ तो आपको बता दें कि इस आपदा का भारत पर कोई असर नहीं हुआ। 
 
और इसका मुख्य कारण था हिमालय की श्रेणियां, जिसके कारण वो धुंध और धुंआ भारत को प्रभावित नहीं कर पाया। ठीक उसी समय भारत के उत्तर में गुप्त साम्राज्य और दक्षिण में पल्लव साम्राज्य फल फूल रहा था।
 
 
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