मुझे एक बात समझ में नही आती की देश हित, गरीबों के लिए प्यार, और कुरीतियों का उल्लेख सिर्फ हिंदू त्यौहार में ही क्यों होता है?
लोगों को गलतियां तभी दिखाई देती है जब ये हिंदू धर्म से संबंधित हो।
अन्य धर्मों के अंधविश्वास पर आंखे क्यों बंद कर ली जाती हैं? हिंदुओ को गौ मूत्र पर ज्ञान देने वाले इस्लाम में ऊंट के मूत्र के प्रयोग के बारे में क्यों चुप रहते हैं।
मजारो के ऊपर चढ़ाई जाने वाली चादरों से लोगों को कोई दिक्कत नहीं होती और शिव लिंग पर दस रुपए के दूध पर भाषण दे देते हैं।
लोग कभी ये क्यों नहीं कहते कि चर्च में मोमबत्ती जलाने से अच्छा है कि किसी गरीब के झोपड़े में रोशनी करें।
दीपावली पर पटाखे से होने वाले एक दिन के ध्वनि प्रदुषण पर ज्ञान देने वाले रोज दिन में पांच बार होने वाले ध्वनि प्रदूषण पर चुप क्यों हो जाते हैं।
मंदिरों में दान ना देने की ज्ञान देने वाले ये क्यों भूल जाते है कि मंदिरों में दिया गया दान सरकार के नियंत्रण में होता है
जबकि मस्जिदों और चर्च में दिए गए दान पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता।
मैं मानता हूं कि जलिकुट्ट जैसा त्यौहार उचित नहीं है लेकिन यह सिर्फ एक विशेष राज्य में और बहुत ही सीमित जगह होता है और इस पर भी सरकार पाबंदी लगाने की सोच रही है
लेकिन यही लोग बकरीद पर लाखों जानवरो की कुर्बानी पर मुंह क्यों बंद कर लेते है?
एक मजहब जिसमे वो लाखों करोड़ों जानवरों को एक दिन में मार देंगे तब किसी को कोई दिक्कत या अंधविश्वास नहीं दिखाई देगा
लेकिन शिव लिंग पर दूध अर्पित करना लोगों को पाखंड लगता है।
जितना दूध शिव लिंग पर अर्पित होता है क्या उतना दूध आप वर्ष भर में किसी गरीब को दे सकते हैं,
आप दिन भर में पान, मसाला बीड़ी, सिगरेट और शराब जैसी चीजें पर पैसे फूंक कर शिव लिंग पर दूध अर्पित करने को पाखंड कैसे बोल सकते हो।
जिनका ये कहना है की वो हिन्दू धर्म की कुरीतियों को समाप्त करना चाह रहे हैं तो उनको बाकी धर्म की कुरीतियों से इतना प्यार क्यों है,
और अगर आप कुरीतियां समाप्त करना चाहते है तो आप लोगों को साक्षर करे कुरीतियां अपने आप खत्म हो जायेगी।
अगर आपको ये लगता है कि की ये पैसे की बर्बादी है तो कौन व्यक्ति अपना पैसा कहां खर्च कर रहा है ये तय करने का हक़ उसी व्यक्ति को है ना कि हमको।
शिव जी तो कहते नहीं कि हमको दूध चड़ाओ तो जो लोग दूध अर्पित करते हैं वो अपनी श्रद्धा से करते है ना कि किसी के डराने या धमकाने से।
यदि आपको लगता है कि ये खाद्य पदार्थ की बर्बादी है तो क्या आप मुझे बता पायेंगे कि आखिरी बार आपने कब दान दिया था और साल भर में कितना दान देते हैं ?
वो मुझ जैसे अनजान व्यक्ति को आप हिसाब देना पसंद करेगें? यदि नहीं तो ये भाषण भी आपका बेकार है।
हर नए साल पर लाखों के जानवरो को पार्टी के नाम पर खा जाने वाले लोग शिवलिंग पर दूध चड़ाने को गलत कैसे बोल सकते है।
शिव लिंग पर हम किसी जीव की हत्या करके तो नहीं चडा रहे फिर दिक्कत है कहां?
शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का वैज्ञानिक कारण
प्राचीन काल में शिवालयों का निर्माण कुंआ, बावड़ी, तालाब अथवा नदी के किनारे होता था आज भी आप देखेंगे कि बड़े से बड़ा शिव मंदिर भी नदी के किनारे ही बसा होता है।
शिवलिंग पर अर्पित होने वाला दूध गरीब तबके के लोग ले जाते थे और हमारे ऋषि मुनियों ने शायद इसी प्रयोजन से शिवलिंग पर दूध अर्पित करने को सही माना था
क्युकी बहुत से गरीबों को दूध मिल पाए लेकिन समय बदलने के साथ साथ इसकी मुख्य धारा बदलती चली गई और इसका स्थान गलत चीजों ने ले लिया जैसे दूध को नाली में बहाया जाने लगा।
अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो शिव लिंग हमेशा वहीं होते हैं जहां रेडियो एक्टिव पदार्थ पाए जाते है और वैज्ञानिक भी ये मानते है कि दूध, विलव पत्र, धतूरा, गुड़हल, शहद, मदार का पेड़ आदि रेडियो एक्टिव पदार्थो को सोख लेते हैं।
हमारी मान्यताओं के अनुसार शिव जी ने विष पिया था तो उस विष को शांत करने के लिए भी दूध चड़ाया जाता है।
सावन के महीने में दूध अर्पित करने का एक कारण ये भी है कि सावन के महीने में वात और कफ कि अधिकता रहती है और दूध इस मौसम में नहीं पीना चाहिए और इसलिए इसको शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है सावन के महीने में।
भारत हमेशा कृषि प्रधान देश रहा है जहा ढेर सारी नदियां है और अच्छी फसल होती है
हमारे यहां दूध अनाज आदि की कभी कमी नहीं पड़ती थी तो जो लोग अरब देश जैसे मरुस्थल से आए है जहां पानी तक नसीब नहीं होता उनको ये बर्बादी ही लगेगा।
हिन्दू धर्म एक विज्ञान पर आधारित धर्म है यह हर चीज के पीछे कोई ना कोई विज्ञान होता है,
बस समय के साथ साथ और विदेशी आक्रमण के कारण बहुत से संस्कार गलत दिशा में चले गए लेकिन हम गलत चीजों में सुधार भी करते चले गए।
यही तो है हिंदू धर्म की महानता जो सभी धर्मो को बराबर मानता है और ये कभी नहीं कहता की हम ही श्रेष्ठ हैं।
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