Sati Pratha Kisne Shuru Ki – सती प्रथा जिसमें आदमी के मरने के बाद उसकी पत्नी को उसकी चिता के साथ जला दिया जाता था।
क्या ये सच में हमारे हिंदू समाज का हिस्सा रही है या इसे कुरीति की तरह हिंदू धर्म में शामिल करवाया गया।
आज हम सती प्रथा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य आपको बताएंगे जिसको पड़ने के बाद आपको इस प्रथा का आदी और अंत पता चलेगा।
पहले जब दो देश के राजाओं के बीच युद्ध होता था तो युद्ध के अपने नियम थे।
वह युद्ध केवल राजाओं और सैनिक तक ही सीमित रहता था।
युद्ध में हार या जीत होने के बाद हारे हुए राजा की प्रजा को कोई भी क्षति नहीं पहुंचाई जाती थी। बच्चों, स्त्रियों और बुजुर्गों को कभी भी मारा नहीं जाता था।
भारत पर अरबों का आक्रमण
परंतु जब मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत पर हमले शुरू किए तो वो बहुत ही बर्बर तरीके से पेश आते थे।
मुस्लिम आक्रमणकारी असभ्य और हिंसक होते थे।
ये युद्ध जीतने के बाद बच्चों और बुजुर्गों तक को मार देते थे और स्त्रियों को बंधक बनाकर अमानवीय कृत्य करते थे।
यहां तक कि मुस्लिम आक्रमणकारी स्त्रियों के शवों तक के साथ दुष्कर्म करते थे।
इन बर्बर मुस्लिम आक्रमणकारियों से बचने के लिए महिलाएं जौहर करने लगीं जिसे बाद में सती प्रथा जैसी कुरीति में बदल दिया गया।
सती प्रथा का हमारे हिंदू समाज से कोई लेना देना नहीं है। हमारे हिंदू समाज में तो विधवा विवाह को बढ़ावा दिया जाता था।
जब बाली का वध हुआ तो उसकी पत्नी का विवाह सुग्रीव से हुआ।
रावण के वध के बाद रावण की पत्नी मंदोदरी का विवाह विभीषण के साथ हुआ।
पाण्डव की मृत्यु के बाद कुंती सती नही हुई, ना ही दशरथ जी की मृत्यू के बाद उनकी रानियां, महाभारत या रामायण में जितने भी योद्धा मरे क्या उनकी पत्नियां सती हो गई? नहीं !
इसी तरह हमारे ग्रंथों में कहीं भी सती प्रथा का उल्लेख नहीं है।
ये सिर्फ़ एक कुरीति थी जो सिर्फ़ मुस्लिम आक्रांताओं से बचने के लिए हिंदु औरतें करती थीं।
बाद में जब ये एक कुरीति बन गई तो राजा राम मोहन राय ने इसको खत्म करने के लिए भरपूर प्रयास किया और सफलता भी पाई।
जौहर का सबसे प्रमुख उल्लेख इतिहास में तब मिलता है जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ में भयंकर और बर्बर तरीके से रक्तपात मचाया था तो पद्मावत ने हजारों रानियों के साथ जौहर किया था।
कुछ लोगों ने सती प्रथा को भगवान शिव के साथ भी जोड़कर गलत तरीके से पेश किया जैसे राजा दक्ष की बेटी सती ने अपने पति शिव जी के अपमान से रूष्ट होकर खुद को आग के हवाले कर दिया था।
जिसे बाद में लोगों ने गलत व्याख्या कर के सती प्रथा से जोड़ दिया।
सती प्रथा का हिंदु संस्कृति से कोई लेना देना नही था ये सिर्फ एक कुरीति थी जो अब समाप्त हो चुकी है।
और यही हमारे हिंदु धर्म की खासियत है की हम अपने अंदर की कुरीति को खत्म करने को हमेशा तैयार रहते हैं।
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