चमार शब्द (Chamar Vansh Ka Itihas) सुन कर लोगों को बहुत अपमानजनक सा महसूस होता है।
लोग इस शब्द की गाली से तुलना करते हैं।
क्या आपको पता है की चमार शब्द का पहली बार इस्तमाल कब हुआ था?
आज हम आपको चमार शब्द का सही मतलब बताएंगे और ये भी बताएंगे की चमार का हमारे इतिहास में कितना गौरवशाली वर्णन है।
इस लेख को पड़ने के बाद आपका हमारे समाज में चमार को लेकर फैली एक भ्रांति से विश्वास उठ जाएगा।
चमार शब्द का पहली बार उपयोग कब हुआ – Chamar Vansh Ka Itihas
चमार शब्द का मतलब होता है जो चमड़े का काम करते है अर्थात मोची, जो आपको पूरे भारत में सड़क किनारे जूते और चप्पल बनाते हुए मिल जायेंगे।
भारत में पहले चमार शब्द का उपयोग नहीं होता था।
क्योंकि भारत में लोग चमड़े की चीजों का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते थे और जब हमारे देश में विदेशी आक्रमण शुरू हुए तो चमड़े का इस्तमाल होना शुरू हो गया।
सिकन्दर लोधी ने सबसे पहले चमार शब्द का इस्तमाल किया ताकि वो चंवर वंश को बदनाम करके उनकी शक्ति को कम कर सके और हिंदुओ में फूट डाल कर आसानी से राज कर सके।
चंवर वंश के राजपूत हैं चमार चंवर राजपूत थे और चंवर वंशी वंश से संबंधित थे।
राजा चंवरसैन इनके वंश के महापुरुष माने जाते थे और उन्हीं के नाम पर चंवरवंश की स्थापना हुई।
16वीं शताब्दी के आस पास चंवर वंशी दिल्ली के आस पास के क्षेत्र में रहते थे और वो धीरे धीरे काफी शक्तिशाली हो गए थे।
जिसके कारण सिकंदर लोधी को उनसे डर लगने लगा था और कई बार झड़प भी हुई।
लोधी ने बदनाम करने के लिए किया चंवर को चमार संत रविदास चंवर वंश के थे और मेवाड़ के राजा राणा सांगा की अच्छी मित्रता थी।
संत रविदास के लाखों अनुयायी थे।
आपको आज भी राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली में कई रविदासिया मिल जायेंगे।
लोधी ने चंवर को और शक्तिशाली होने से रोकने के लिए एक चाल चली।
लोधी ने सोचा की हिंदुओ को चिकनी चुपड़ी बातों में फसाना ज्यादा आसान है और उन्हें आसानी से मुस्लिम धर्म में परिवर्तित किया जा सकता है।
इसलिए उसने एक मुस्लिम फकीर को संत रविदास के पास भेजा ताकि वो उनको अपने में शामिल कर सके।
लेकिन वो मुस्लिम फकीर संत रविदास से प्रभावित हो कर हिंदू बन गया और अपना नाम रामदास रख लिया।
सिकन्दर लोधी बहुत ज्यादा परेशान हो गया और उसने हिंदू संतों और उनके अनुयायियों को गिरफ्तार करके प्रताड़ित करना शुरु कर दिया।
उसने रविदासिओ को इस्लाम अपनाने के लिए उनपर जुल्म ढाया।
हिंदु मरे हुए जानवरो को छूने या उनकी खाल निकालने को अच्छा काम नहीं मानते थे।
ये सब काम मुस्लिम ही करते थे इसलिए सिकन्दर लोधी ने उन सारे संतो और सेवकों को जबरन मरे हुए जानवरों की खाल निकालने का काम दिया और जो ये काम नहीं करता उसे मार दिया जाता।
उसने चंवर वंश को बदनाम करने के लिए इस शब्द को चमार कह कर फैला दिया और इस तरह चमार शब्द की उत्पत्ति हुई।
भारत में लगभग 30 करोड़ मुसलमान हैं और करीब 35 करोड़ अनुसूचित जन जातियों के लोग हैं।
अब आप खुद सोचिए अगर इन सब लोगों ने मुस्लिम आक्रांताओं के विरुद्ध युद्ध नहीं किया होता और इस्लाम अपना लिया होता तो अब भारत में 60 करोड़ मुस्लिम होते और भारत अब तक इस्लामिक देश बन चुका होता।
भारत में भी शरीय कानून लागू हो गया होता और तालिबान जैसे हालात भारत के होते।
हमें अपनी ये एकता और अखंडता बना के रखनी है ताकि हम इस्लामिक मुल्क ना बन पाए अब आपको समझ आ गया होगा की चमार कोई अपमानित करने वाला शब्द नहीं है।
चंवर वंश ने हिंदु धर्म को बचाने और मुस्लिम आक्रांताओं से लोहा लेने की ये कीमत चुकाई।
अगली बार किसी को चमार शब्द का इस्तमाल करते हुए सुने तो उसे ये इतिहास (Chamar Vansh Ka Itihas) जरूर बताएं।
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तो फिर सतयुग, त्रेता, द्वापर व कलयुग की रचना भी इब्राहिम लोदी ने ही की होगी, इस वैज्ञानिक युग में ये बेवकूफी करना बंद करो।
अरे अब्दुल सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में कहीं भी चमार जाती का उल्लेख नहीं है, ये सब मुगलों के समय बनाई गई कुप्रथा है,
वैसे तुम शिया हो की सुन्नी 🤣🤣🤣